मुझको भी अब गरीब औ' पिछड़ा बताइए,
अच्छी ख़बर भी कोई कभी तो सुनाइए,
ये जानना कठिन है कि मासूम कौन है,
हम सब ही गुनहगार हैं लाठी उठाइए,
नन्दी का ग्राम हो भले दौसा के रास्ते,
आवाम पे बेखौफ हो गोली चलाइए,
भरती हुई है आपकी सरकारी कौम में,
वर्दी की लाज आप भी थोड़ी बचाइए,
चशमा चढ़ा के ग़ौर से अख़बार देख कर,
चाय की प्यालियों से ही बातें बनाइए,
बोला, वो टिमटिमाता सा इक बल्ब नोंचकर,
'ये रेल बाप की है इसे बेच खाइए',
ये है हमारी सभ्यता ये अपना तौर है,
आना हो आइए यदि जाना हो जाइए,
धरती से जुड़े लोगों से तुम आज कट गए,
लिखने के लिए और भला अब क्या चाहिए,
हम सबमें बैठ कर के कोई पूछ रहा है,
"क्या ठीक है? ग़लत क्या?", भला क्या बताइए,
'इंसाफ की डगर पे', गीत सुन बड़े हुए,
सच है अगर ये बात तो चल कर दिखाइए।
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सुनिए और पढ़िए - अच्छी ख़बर भी कोई...
May 31, 2007
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5 प्रतिक्रियाएं:
बहुत ही अच्छी और यथार्थ का चित्रण करती है आपकी ये कविता।
bahut badiya. Sound quality thodi acchi ki ja sakti hai.
बढि़या है। सुंदर। लगे रहो। सारी कवितायें अपनी आवाज में डाल दो।
लो, अच्छी खबर सुनो कि यह प्रयास बहुत पसंद आया. अनूप भाई की बात पर ध्यान दिया जाये और अपनी कविताओं की पॉड कास्टिंग शुरु की जाये. :)
bahut sundar !!! mazaa aa gaya
iss ke misra-e-sani mein ... 'abb" shabd anivaaryy hai kyaa Abinav bhai ??
धरती से जुड़े लोगों से तुम आज कट गए,
लिखने के लिए और भला अब क्या चाहिए,
Ripudaman
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