२००८ - प्लेटफार्म पर आने वाला है

Dec 31, 2007





जाने वाला वर्ष सुनहरी स्मृतियाँ स्पर्श करे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे,

वर्ष नया क्या सिर्फ कलैण्डर की तारीख नई सी है,
या जीवन के प्लेटफार्म से कोई रेल गई सी है,
कितने मित्र राह में चलते हुए नित्य बन जाते हैं,
उनमें से कितने ही तो सुख दुख में साथ निभाते हैं,
किंतु मित्रता की परिभाषा में परिवर्तन देखा है,
दूरी को कम ज़्यादा करती कोई नियति रेखा है,
मेरी अभिलाषा है जितने लोग दूर जा बैठे हैं,
मैं उन सबके पास कहीं जाऊँ जाकर के मुस्काऊँ,
और कहूँ नववर्ष तुम्हारे जीवन का उत्कर्ष करे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे,

सात के साथ ज़रा देखो तो कितने साथी छूट गए,
कितने रिश्ते नए बने और कितने रिश्ते टूट गए,
माता सरस्वती नें अपने प्रिय पुत्र को मांग लिया,
श्री बृजेन्द्र अवस्थी के संग एक युग नें प्रस्थान किया,
जिनकी वाणी से पाए थे भजनों नें आयाम नए,
श्री हरि ओम शरण भी अंतर्ध्यान राम के धाम गए,
आदर्शों की कथा में अनुपम पृष्ठ जोड़ कर चले गए,
कमलेश्वर, त्रिलोचन, निर्मल कलम तोड़ कर चले गए,
जगमग जगमग गए हैं सूरज कई धरा के आंगन से,
आठ में गहरे अंधकार से जग मिलकर संघर्ष करे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे,

गली गली में सजती दिखती अपराधों की झाँकी है,
आतंकी आंधी की जड़ में कितनी ताकत बाकी है,
नफरत के, कटुता के हामी कितने ऊँचे पर पर हैं,
कितने अणुबम लगे हुए न जाने किस सरहद पर हैं,
दिल रोता है जब नगरों में रोज़ धमाके होते हैं,
और धमाकों पर घर में ही खूब ठहाके होते हैं,
बिके हुए टीवी चैनल ख़बरों के दाम लगाते हैं,
और इलाके के गुण्डे सत्ता के जाम लगाते हैं,
ऐसे में जब कद के मापक बस विलास हो बैठे हैं,
जिन पथराई आंखों के सपने उदास हो बैठे हैं,
उन आंखों में भी सच्चाई का थोड़ा सा हर्ष भरे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे।

एक और बम ब्लास्ट

Dec 29, 2007



नज़ीर का अर्थ होता है बराबर,
बेनज़ीर का मतलब हुआ जिसकी कोई बराबरी न कर सके,
जब उसके जाने की ख़बर सुनी तो दुःख हुआ,
ऐसा नही था की उसके होने या न होने से मुझे कोई फर्क पड़ता है,
फर्क तो पाकिस्तान को भी नही पड़ता है,
थोडी देर हाय हाय के नारे लगा कर थक जायेंगे,
दो चार दिन उछल कूद कर सब बैठ जायेंगे,
और तलाश करने लगेंगे किसी दूसरी बेनज़ीर में,
किसी शिया को, किसी सिन्धी को, या किसी मुहाजिर को,
क्या अचरज की कभी पाकिस्तान हमारे भारत का हिस्सा था,
इंसान में जाति धर्म क्षेत्र ढूँढने में कोई हमारी बराबरी कर सकता है क्या,
खैर, प्रतियोगिता परीक्षा हेतु एक नया प्रश्न तैयार हो गया है,
वाद विवाद को एक और विषय,
फिर,
एक और बम ब्लास्ट.

पारले-जी का पैकेट

Dec 7, 2007

जब मैं छोटा था,
तो घर पर पारले-जी का पैकेट आता था,
उसमें बारह बिस्कुट होते थे,
माँ, मुझे और मेरे छोटे भाई को,
चार चार बिस्कुट देती थी,
फिर जब हम जिद करते तो बाकी के दो दो भी मिल जाते थे,
उनको चाय में डुबो डुबो कर खाने में स्वर्ग का आनंद आता था,
अब में बड़ा हो गया हूँ,
मैं अपने माता पिता के साथ नही रहता हूँ,
अब मेरा भाई और मैं अलग अलग रहते हैं,
मेरी पत्नी को पारले जी पसंद नही हैं,
अब में सिएटल के इंडिया स्टोर से एक सौ बिस्कुट वाला पारले जी का पैकेट लाता हूँ,
पर वो स्वाद नही पा पता हूँ,
मैं उनमें स्वाद ढूँढने की कोशिश करता हूँ,
पर हार जाता हूँ,
शायद स्वर्ग बिस्कुट में नहीं,
किसी और चीज़ में ही होता था.

जब में छोटा था,
तब मेरे माता पिता,
दो कमरों के छोटे से घर में रहते थे,
आपस में बातें करते थे,
"देखो, तिवारीजी का लड़का,
इंजिनीयर बन कर अमेरिका चला गया है,
राजाजीपुरम मैं क्या बढ़िया घर बनवा रहे हैं,
हमारा शेर क्या कुछ कमाल दिखा पायेगा,
क्या अमेरिका जा पायेगा,
हमारे लिए स्वर्ग ला पायेगा."
आज वो सात कमरों के अपने घर में अकेले हैं,
फ़ोन के उस पार से आने वाली आवाजों में ही उनके मेले हैं,
बच्चे पहले रोज़ फ़ोन करते थे,
फिर दो तीन दिन में एक बार करने लगे,
अब सप्ताह में एक बार करते हैं,
कल महीने में एक बार करेंगे,
माँ जब परले जी का पैकेट देखती होगी,
तो सोचती होगी,
शायद स्वर्ग किसी और चीज़ में ही होता था.

६ दिसंबर - बाबर को नहीं देखा है मैंने

Dec 6, 2007













उलझा हुआ हूँ वक्त के बोझिल सवाल में,
पत्थर निकल रहे हैं बहुत आज दाल में,

गिद्धों को उसने टीम का सरदार कर दिया,
लो फंस गई भोली सी चिरइया भी जाल में,

बाबर को नहीं देखा है मैंने कभी मगर,
मस्जिद ज़रूर देखी है इक ख़स्ता हाल में,

मुद्दत से कह रहे हैं जो मंदिर बनाएँगे,
उनसे सड़क न एक बनी पाँच साल में।

नीरज त्रिपाठी नें सुनाईं सहज हास्य की बढ़िया कविताएं

Dec 3, 2007

इस शनिवार सिएटल में हैदराबाद से पधारे कवि नीरज त्रिपाठी के सम्मान में कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ. शनिवार को खूब बर्फ भी पड़ी तो एक बार तो लगा की शायद कार्यक्रम न हो पाये पर अंततः कुछ काव्य प्रेमी जुट ही गए और बढ़िया काव्य धारा बही. ये देखिये कुछ चित्र.



यहाँ गोष्ठी वाले दिन खूब बर्फ पड़ी, हम लोग फोटो खिचाने बाहर आए, ज़रा संभाल कर कही फिसल जाएँ


राहुल उपाध्याय, अभिनव शुक्ल, नीरज त्रिपाठी तथा जेरेड शोक्ले


कविता सुनते समय श्रोताओं के साथ ठहाका लगाते हुए कवि नीरज त्रिपाठी



भोलू वाली कविता सुनते हुए कवि नीरज त्रिपाठी


कविता सुन कर मुस्कुराते हुए कवि नीरज त्रिपाठी


कवि गोष्ठी के बाद का एक चित्र



एक और समूह चित्र

अभिनव शुक्ल, नीरज त्रिपाठी तथा जेरेड शोक्ले

कनाडा (वेंकूवर) में कवि सम्मेलन

Dec 1, 2007

इधर २४ नवंबर २००७ के दिन वेंकूवर, कनाडा में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था. हम भी अपने मित्र राहुल उपाध्याय जी के साथ वहां गए थे. कार्यक्रम में देखने वाली बात यह रही कि इसमें हिंदी के अतिरिक्त उर्दू और पंजाबी के कवियों नें भी अपनी रचनाएँ पढ़ीं।

आचार्य श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी नें कार्यक्रम का कुशल संचालन किया। उनके द्वारा सुनाए गए मुक्तक सुन कर बच्चन जी, रमानाथ जी और नीरज जी की स्मृतियाँ ताजा हो गईं। कर्यक्रम इस आशा के साथ संपन्न हुआ कि आने वाले समय में यू एस ए तथा कनाडा में अनेक संयुक्त साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इस सप्ताह नीरज त्रिपाठी जी सिएटल आए हैं अतः कल उनके सम्मान में आयोजित गोष्ठी की तस्वीरें लेकर उपस्थित होऊंगा. आज इस छोटी सी रिपोर्ट के साथ कुछ चित्र देखिये.



हरदेव सोढी 'अश्क' की पुस्तक 'समय के साए' का विमोचन


कार्यक्रम के बाद का सामूहिक फोटो सेशन १


कार्यक्रम के बाद का सामूहिक फोटो सेशन २



सुबह सवेरे नाश्ते की मेज़ पर आचार्य श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी एवं उनकी जीवन संगिनी श्रीमती कांति द्विवेदी


आचार्य द्विवेदी, श्रीमती द्विवेदी तथा श्रीमती दीप्ति शुक्ला


कनाडा में आचार्य जी सर्व धर्म समभाव हेतु होने वाली गोष्ठीयों में नियमित जाते हैं, सुबह सुबह अल्पहार के समय उन्होंने बताया की ऐसे स्थानों पर पहली शर्त ये होती है की आपको अपने ग्रंथों का ज्ञान भली भांति होना चाहिए तथा केवल मेरा मार्ग सही है बाकी सबका ग़लत है वाली भावना नही होनी चाहिए.


आचार्य श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी तथा अबोश उपाध्याय


आशुकविता लिखने में तल्लीन राहुल उपाध्याय


आचार्य जी के मधुर कंठ से सुंदर गीत सुनकर रमानाथ अवस्थी जी की स्मृतियाँ पुनर्जीवित हो उठीं


कविता पढ़ते हुए अभिनव शुक्ला