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मेरी क्रिसमस
Dec 24, 2012
आज शाम को यूँ ही जाकर खड़ा हो गया अपनी बालकनी
पर,
बारिश बिलकुल वैसे ही हो रही थी जैसे सियैटल में
होती है,
नीचे एक लड़की पिज़्ज़ा डिलीवर करने जा रही थी,
कार से नहीं पैदल,
कभी एक हाथ में पिज़्ज़ा का बड़ा थैला पकड़ती,
कभी दूसरे में,
हाथ थक रहा था,
उसनें मुझे देखा तो मैंने इशारे से उसे थैला सर पर
रखने को कहा,
उसनें झट वो थैला सर पर रखा,
बिलकुल वैसे जैसे अपने यहाँ मजदूरनियाँ सर पर उठा
लेती हैं,
पूरी की पूरी ईमारत की ईटें,
आगे के मोड़ पर जाकर,
उसनें धन्यवाद में हाथ हिलाया,
और ज़ोर से 'मेरी क्रिसमस' की आवाज़ लगाई.
प्रेषक: अभिनव @ 12/24/2012 1 प्रतिक्रियाएं
छंद
Dec 23, 2012
शाख से परिंदे नें ये कह के उड़ान भरी,
देखो अब हमारा इंतज़ार नहीं करना,
चीख चीख युद्ध नें सुनाया युद्धभूमियों को,
फेंको अस्त्र-शस्त्र कभी वार नहीं करना,
घन घन घनन लगाई मेघ नें गुहार,
कभी भी हमारा ऐतबार नहीं करना,
अंखियों के मोती यह बोल के दुलक गए,
कुछ भी करो दुबारा प्यार नहीं करना.
सभ्यता का आवरण ओढ़े हुए आचरण,
बिखर बिखर चूक चूक रह जाते हैं,
धुंधलाता लक्ष्य देख कांपते धनुर्धर,
धरे के धरे सभी अचूक रह जाते हैं,
शब्द अर्थ भाव सुर गीत लय ताल सब,
मन में जगाते एक हूक रह जाते हैं,
कूकती है प्रेम वाली कोकिला जो अम्बुआ पे,
ज्ञान के पपीहे सब मूक रह जाते हैं.
प्रेषक: अभिनव @ 12/23/2012 1 प्रतिक्रियाएं
Labels: कविताएं
करूँ क्या दान...
Dec 22, 2012
करूँ क्या दान
ज़िंदगी, बचा क्या मेरे पास है,
किसी को प्राण दे दिये, ह्रदय किसी का हो गया.
किसी को प्राण दे दिये, ह्रदय किसी का हो गया.
न कोई गीत प्रेम
का अधर पे मेरे आ सका,
न कोई राग भैरवी कभी स्वरों को पा सका,
मगर मिलाप हो गया नयन से नभ की ताल का,
पड़ाव बन गया समय समय की तेज़ चल का,
कुछ ऐसी रोशनी हुयी मैं रोशनी में खो गया,
किसी को प्राण दे दिये, ह्रदय किसी का हो गया.
न कोई राग भैरवी कभी स्वरों को पा सका,
मगर मिलाप हो गया नयन से नभ की ताल का,
पड़ाव बन गया समय समय की तेज़ चल का,
कुछ ऐसी रोशनी हुयी मैं रोशनी में खो गया,
किसी को प्राण दे दिये, ह्रदय किसी का हो गया.
निशा चरण चरण कटी
मगर न मोक्ष पा सकी,
सपन थे द्वार पर खड़े न नींद किंतु आ सकी,
बहुत अधिक थकान थी शरीर खंड खंड था,
नयन को अपने तेज़ पर घमंड ही घमंड था,
जो पुण्य गोद मिल गई मैं गहरी नींद सो गया,
किसी को प्राण दे दिये, ह्रदय किसी का हो गया.
सपन थे द्वार पर खड़े न नींद किंतु आ सकी,
बहुत अधिक थकान थी शरीर खंड खंड था,
नयन को अपने तेज़ पर घमंड ही घमंड था,
जो पुण्य गोद मिल गई मैं गहरी नींद सो गया,
किसी को प्राण दे दिये, ह्रदय किसी का हो गया.
सभी कलुष भसम हुए
कुछ इस तरह का होम था,
न कोई भेदभाव था प्रसन्न रोम रोम था,
उलझ सकी न ज़िंदगी किसी भी जात पात में,
फँसी न साँस फिर कभी कहीं किसी प्रपात में,
नए जनम की खोज में मैं उसके पास जो गया.
किसी को प्राण दे दिये, ह्रदय किसी का हो गया.
न कोई भेदभाव था प्रसन्न रोम रोम था,
उलझ सकी न ज़िंदगी किसी भी जात पात में,
फँसी न साँस फिर कभी कहीं किसी प्रपात में,
नए जनम की खोज में मैं उसके पास जो गया.
किसी को प्राण दे दिये, ह्रदय किसी का हो गया.
न दृश्य दिख सका
कोई नयन नयन बहक गए,
वो मेरे द्वार आ गई चमन चमन महक गए,
पवन का वेग थम गया गगन की धूप ढल गई,
वो दामिनी सी हंस पड़ी शिला शिला मचल गई,
बरस उठा कुछ इस तरह वो मेघ पाप धो गया,
किसी को प्राण दे दिये, ह्रदय किसी का हो गया.
वो मेरे द्वार आ गई चमन चमन महक गए,
पवन का वेग थम गया गगन की धूप ढल गई,
वो दामिनी सी हंस पड़ी शिला शिला मचल गई,
बरस उठा कुछ इस तरह वो मेघ पाप धो गया,
किसी को प्राण दे दिये, ह्रदय किसी का हो गया.
करूँ क्या दान ज़िंदगी, बचा क्या मेरे पास है,
किसी को प्राण दे दिये, ह्रदय किसी का हो गया.
किसी को प्राण दे दिये, ह्रदय किसी का हो गया.
प्रेषक: अभिनव @ 12/22/2012 0 प्रतिक्रियाएं
Labels: गीत
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है
Dec 10, 2012
सियैटल में पतझड़ का अपना अलग ही रंग होता है. हलकी हलकी बारिश निरंतर चलती रहती है, आसमान पर मटमैले बादल छाये रहते हैं आर धरती पर असंख्य पत्र.
लाल, हरे, पीले, नारंगी, भूरे,
काले हैं,
पत्र वृक्ष से अब अनुमतियाँ लेने वाले हैं,
मधुर सुवासित पवन का झोंका मस्त मलंगा है,
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है.
पत्र वृक्ष से अब अनुमतियाँ लेने वाले हैं,
मधुर सुवासित पवन का झोंका मस्त मलंगा है,
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है.
जैसे दुल्हन कोई सासुरे अपने जाती हो,
पाँव महावर सजा हो, बिंदिया गीत सुनाती हो,
अक्षत, रोली, चन्दन, हल्दी संग विदाई हो,
पाँव महावर सजा हो, बिंदिया गीत सुनाती हो,
अक्षत, रोली, चन्दन, हल्दी संग विदाई हो,
चार कहारों नें डोली कांधों पे उठाई हो,
ऐसी सजधज, देख जिसे सजधज को विस्मय हो,
मन के भीतर भीतर कुछ अंजाना सा भय हो,
ऐसी सजधज, देख जिसे सजधज को विस्मय हो,
मन के भीतर भीतर कुछ अंजाना सा भय हो,
लाज-शर्म, मुस्कान, कंपकंपी, ताल अभंगा है,
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है.
स्वर्ग धरा पर उतरा ऋतुओं की अंगड़ाई है,
जीवन का यह चक्र अनोखा, मिलन जुदाई है,
मौन खड़े हैं वृक्ष बांह फैलाए बाबुल से,
बोल नहीं पाते हैं पर लगते हैं आकुल से,
मौन खड़े हैं वृक्ष बांह फैलाए बाबुल से,
बोल नहीं पाते हैं पर लगते हैं आकुल से,
चिड़िया तिनकों के घर से बाहर आ बैठी है,
सुनो ध्यान से, गीत विदा के गाती रहती है,
अम्बर से भी बरस रही आशीष की गंगा है,
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है.
अम्बर से भी बरस रही आशीष की गंगा है,
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है.
प्रेषक: अभिनव @ 12/10/2012 0 प्रतिक्रियाएं
Labels: गीत
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