पत्र वृक्ष से अब अनुमतियाँ लेने वाले हैं,
मधुर सुवासित पवन का झोंका मस्त मलंगा है,
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है.
पाँव महावर सजा हो, बिंदिया गीत सुनाती हो,
अक्षत, रोली, चन्दन, हल्दी संग विदाई हो,
ऐसी सजधज, देख जिसे सजधज को विस्मय हो,
मन के भीतर भीतर कुछ अंजाना सा भय हो,
मौन खड़े हैं वृक्ष बांह फैलाए बाबुल से,
बोल नहीं पाते हैं पर लगते हैं आकुल से,
अम्बर से भी बरस रही आशीष की गंगा है,
पतझड़ का मौसम भी कितना रंग बिरंगा है.
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