सुनिए और पढ़िए - अच्छी ख़बर भी कोई...

May 31, 2007



मुझको भी अब गरीब औ' पिछड़ा बताइए,
अच्छी ख़बर भी कोई कभी तो सुनाइए,

ये जानना कठिन है कि मासूम कौन है,
हम सब ही गुनहगार हैं लाठी उठाइए,

नन्दी का ग्राम हो भले दौसा के रास्ते,
आवाम पे बेखौफ हो गोली चलाइए,

भरती हुई है आपकी सरकारी कौम में,
वर्दी की लाज आप भी थोड़ी बचाइए,

चशमा चढ़ा के ग़ौर से अख़बार देख कर,
चाय की प्यालियों से ही बातें बनाइए,

बोला, वो टिमटिमाता सा इक बल्ब नोंचकर,
'ये रेल बाप की है इसे बेच खाइए',

ये है हमारी सभ्यता ये अपना तौर है,
आना हो आइए यदि जाना हो जाइए,

धरती से जुड़े लोगों से तुम आज कट गए,
लिखने के लिए और भला अब क्या चाहिए,

हम सबमें बैठ कर के कोई पूछ रहा है,
"क्या ठीक है? ग़लत क्या?", भला क्या बताइए,

'इंसाफ की डगर पे', गीत सुन बड़े हुए,
सच है अगर ये बात तो चल कर दिखाइए।

इंटर के नतीजे और टीवी पत्रकारिता का हाल

May 26, 2007



बातें जो मुझे ग़लत लगीं
१ भारत बांगलादेश 'रिवेन्ज' (प्रतिशोध, बदला) सीरीज़ः यह कैसा नाम है, क्या हम जाने अन्जाने प्रतिशोध की भावना को भड़का रहे हैं। (यह वीडियो शुरू होने से पहले आता था, जो कि यह लेख पोस्ट करने के दो घंटे में हटा दिया गया है, मैं मानता हूँ कि इस लेख को पढ़कर ही हटाया गया है।)
२ आपने अपनी मेड का नाम नहीं लियाः क्या टीवी चैनल देखने वाले सभी लोगों के घरों में मेड होती है और मान लीजिए होती भी हैं तो क्या यहाँ पर जिस टोन का प्रयोग किया गया था क्या वह उपहासात्मक नहीं थी।
३ क्या आपकी ६० प्रतिशत अंक वाली सहेली आपके कांधे पर सिर रख कर रोना चाहती हैःटापर्स कुछ ही होते हैं तथा उनकी जय जयकार में बाकी लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना क्या ठीक है।

जो ज़रूरी बातें पूछी जानी चाहिए थीं
१ आपने कैसे पढ़ाई की, क्या टाईम टेबल, पुस्तकें आदि।
२ आप आगे के लिए यह विषय क्यों चुनना चाहती हैं।
३ आप क्या बनना चाहती हैं।

बाकी तो सामान्य बातें हैं,
१ हर बार की तरह लड़कियों नें ज्य़ादा अच्छा किया है (अब लड़कों को पचास काम और भी होते हैं पढ़ाई के अलावा।)
२ केन्द्रीय विद्यालय नंबर वन हैं। (सो तो हैं ही, अरे भाई बाराह बरस ऐसे ही थोडी हम केवी में पढ़े हैं।)

मेरी शुभकामनाएँ सभी छात्रों के साथ हैं, पर यह न्यूज़ देखकर मन विचलित हुआ तथा यह भाव मन में आए।
इश्तहार लग रहा है हर सफा अखबार का,
हाल कैसा हो गया है आज पत्रकार का।


नोटः इधर वीर शहीद भगत सिंह जी के अखबार वालों पर कुछ विचार शिल्पा शर्मा जी नें भी पोस्ट किए हैं, आप यहाँ देख सकते हैं, "शहीद भगत सिंह और अखबार वाले"।

पाडकास्ट - "नदी के दो किनारे"

May 24, 2007

कहा जाता है कि सज्जनों का संग सदा आनंद प्रदान करने वाला होता है। आज हमारी याहू चैट पर अनूप शुक्ला उर्फ फुरसतिया जी से बातचीत हुई और लीजिए उन्होंने हमें अपना पहला पाडकास्ट पोस्ट करने के लिए प्रेरित कर दिया। आप भी सुनिए और बताइए कि यह कविता आपको कैसी लगी।

मेरे प्रगतिशील मित्र

May 21, 2007

मेरे प्रगतिशील मित्र,
दुनिया भर की ऊट पटांग,
बातों में सिर खपाते हैं,
मधुमक्खियों के शहद समेटने को,
एक रानी मक्खी द्वारा किया हुआ शोषण बताते हैं,
गरीबी को महिमा मण्डित करते हुए,
एक झूठी लाल सुबह के सपने दिखाते हुए।

कुछ लोग कहते हैं,
सभी बुराइयों की जड़ में पैसा है,
कुछ कहते हैं,
पैसे के न होने के कारण ही ऐसा है,
मुझे लगता है,
इसका धन से कोई संबंध नहीं है,
बुरा या भला होना मात्र एक पड़ाव है,
और यह मानव का नितांत व्यक्तिगत चुनाव है,
ऐसा कौन सा स्थान है,
जहाँ बुराई और भलाई की एक दूसरे को चुनौती नहीं है,
यह किसी एक वर्ग की बपौती नहीं है।

ईश्वर की सत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं,
पुरुस्कारों और कुर्सियों के निकट पाए जाते हैं,
पहनते हैं फटा हुआ कुर्त्ता दिखाने को,
शाम होते ही मचलते हैं मुर्गा खाने को,
नशे में डूबे हुए,
पलकें झपकाते हुए,
गालियाँ बकते हुए,
प्रगति से चिपकते हुए,
मेरे प्रगतिशील मित्र।

मक्का मस्जिद और मैं

May 20, 2007


हैदराबाद की मक्का मस्जिद की सीढ़ियों पर न जाने कितनी बार मैने बैठ कर कबूतरों को दाना चुगते हुए देखा है। नमाज़ी आते वजू करते और नमाज़ पढ़ने चले जाते। प्रेमचंद जी की ईदगाह कहानी में नमाज़ के वर्णन का मूर्त रूप मैंने पहली बार मक्का मस्जिद में ही देखा, प्रेमचंद जी नें कुछ ऐसा लिखा है।
"सुन्दर संचालन है, कितनी सुन्दर व्यवस्था! लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सबके सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हें, और एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हें, और एक साथ खड़े हो जाते हैं, कई बार यही क्रिया होती हे, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाऍं, और यही क्रम चलता, रहे। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाऍं, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानों भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए हैं।"

चारमीनार के सामने बना ये मस्जिद ऐतिहासिक दृष्टि से भी बड़ा महत्वपूर्ण है। आज जब समाचार सुना कि वहाँ भी विस्फोट हो गया है तो समझ में नहीं आया कि क्या करूँ। पहले बनारस का संकट मोचन मंदिर और अब मक्का मस्जिद ये दोनों ऐसे स्थल थे जहाँ मैंने समय बिताया है और आज दोनों जगहों पर विस्फोट हो चुके हैं, खून बह चुका है तथा दिल टूट चुके हैं। संकट मोचन मंदिर में होने वाली आरती की भव्यता भी देखते बनती है। ऐसा मानते हैं कि बजरंग बली की जो मूर्ती मंदिर में है उसे स्वयं तुलसी बाबा नें अपने हाथों से बनाया है।

क्या है इसक पागलपन का अंत और कैसी है ये मानसिकता जो मासूमों के खून से अपने भाग्य को लिखना चाहती है। मैं चाहता हूँ ये सब खत्म हो, पर कैसे यह नहीं जानता। कभी लगता है यदि कानून अपना काम ठीक से करे तो शायद सब ठीक हो जाए। कुछ भाव नीचे लिखी पंक्तियों में बाहर आए पर अभी बहुत से भाव बचे हैं जो न जाने कब फूटेंगे।

कहाँ अब प्यार बसता है हमारे देश में प्यारे,
सदा कुछ दिल में धंसता है हमारे देश में प्यारे,

कभी हिंदू कभी मुस्लिम कभी सिख या ईसाई का,
बहाओ खून सस्ता है हमारे देश में प्यारे,

सड़क पर देखते ही एक दूजे को कत्ल कर दो,
यही क्या एक रस्ता है हमारे देश में प्यारे,

अमां तुम शान से नफरत की उलटी कौम पर कर दो,
कभी नेता भी फंसता है हमारे देश में प्यारे,

कभी हम भी बहे थे हैदराबादी हवाओं में,
मगर अब हाल खस्ता है हमारे देश में प्यारे।

जय गणेश - वाह री प्रभु की माया

May 11, 2007


लीजिए संसार के सबसे बड़े राज्य नें,
एक महिला को अपने नेतृत्व के लिए चुना है,
महिला भी ऐसी जो कि दलित है,
भाई दिल खुश हो गया,
ऐसा नहीं है कि सब ठीक हो जाएगा,
परंतु जो कुछ भी है,
त्रिशंकु विधानसभा से अच्छा है,
सीधा सपाट बहुमत ज़रूरी है,
और भी ज़रूरी चीज़ें हैं,
शायद धीरे धीरे वह भी ठीक हो जाएँ,
क्या पता एक बार पुनः,
पूरे देश को राह दिखा सके,
हमारा यह बीमारू प्रदेश,
मुझमें अभी आशा शेष है।

पत्थर और पानी


पत्थर और पानी के बीच का टकराव,
निरंतर जा़री है,
शायद चिर काल से,
पानी की ज़िद है,
कि वो पत्थर को,
अपनी जगह से,
हिला कर रख देगा,
अपने साथ बहा ले जाएगा,
पत्थर का प्रण है,
वो अपनी जगह से नहीं हिलेगा,
अचल अडिग रहेगा,
अपनी इन्हीं ज़िदों और प्रणों के चलते,
दोनो अपने काम में लीन हैं,
पत्थर चिकना हो जाता है,
गोल हो जाता है,
तब समय उस घिसे हुए सुंदर पत्थर को,
उठाकर मन्दिर में रख देता है,
फिर उसपर पानी चढ़या जाता है,
मानव और उसके संघर्षों के मध्य भी,
चलता रहता है,
एक,
पत्थर और पानी के बीच का टकराव।

अगर ये महाराज दुबला सकते हैं तो हम भी...

May 9, 2007


हाँ मित्रों, यह चित्र किसी ज़माने में हमारे आदर्श रहे, शैल-विशाल देहधारी, गजबदना, मोट-शिरोमणी, श्रीमान अदनान सामी का है। जब से हमें ज्ञात हुआ है कि इन्होंने भी अपना वज़न कम कर लिया है तब से हमें लगने लगा है कि संसार में कुछ भी असंभव नहीं है। यदि कल कोई हमसे आकर कहे कि मछलियाँ आसमान में उड़ने लगी हैं, शेर पेड़ पर रहने लगा है, नेता चरित्रवान हो गए हैं, पाकिस्तान आतंकवादियों को प्रशिक्षण नहीं दे रहा है, कशमीर भारत का अभिन्न अंग नहीं है, यूपी में जुर्म कम है तथा अगला आलम्पिक सूरज पर हो रहा है तो अब मैं निर्विकार भाव से सब सच मानने को तैयार हूँ। जब ये दुबले हो सकते हैं तो कुछ भी हो सकता है, हम भी हो सकते हैं। बस आवश्यकता है सच्ची लगन और आत्मविश्वास की।

हर बार की तरह इस बार भी प्लान बना लिया गया है। बस अब आवश्कता है इस पर अमल करने की। तो प्लान है तीन तरफा आक्रमण का, हल्के फुल्के योग-व्यायाम, व्यवस्थित भोजन तथा प्रेरक काव्य तथा प्रसंगो द्वारा सफलता प्राप्त करने का।

शारीरिक व्यायामः
- सुबह नहा धो कर आधा घंटा योग करना है। प्राणायाम (भर्त्सिका, कपालभाती, बाह्य, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी) तथा दो सूर्य नमस्कार (दाँए तथा बाँए)।
- शाम को आधा घंटा टहलना है। (ज़रा तेज़ चलना है ये नहीं कि आराम से सिलिर सिलिर।)

भोजनः
- चीनी, आलू तथा तली हुई चीज़ों का परहेज़ करना है।
- चावल पर अलग अलग मत प्राप्त हुए हैं अतः उसे अभी परहेज की परिधि से बाहर रखा गया है।
- पानी खूब पीना है तथा सुबह शाम एक एक ग्लास गुनगुना पानी भी पीना है।
- यदि संभव हो तो भोजन में सलाद (कच्ची गाजर, मूली, टमाटर इत्यादि) भी खाना है।

मस्तिष्कः
- स्वास्थ्यवर्धक साइट्स पर जाना है तथा अन्य लोग कैसे दुबलाए यह जानना है।
- उत्साह का संचार करने वाली कविताओं को पढ़ना है।

छह सप्ताह तक नियमित रूप से इस पर अमल करना है तथा प्रत्येक रविवार को वज़न नापना है। पहली नपाई इस रविवार को होगी।

वैसे तो ओवरवेट होने को व्यक्तिगत विषय माना जाता रहा है परंतु यदि आप चाहें तो आप भी इस प्लान पर अमल कर सकते हैं। जब मैं साप्ताहिक चार्ट प्रकाशित करूँगा तो आपके आंकड़े भी उसमें पेस्ट कर सकता हूँ।

नर हो न निराश करो मन को

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो

जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को

--राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त (साभारः कविता कोश)

योगा तथा प्राणायाम के कुछ वीडियोज़ नीचे दिए जा रहे हैं। (पहले ३० सेकण्डस ब्लैंक स्क्रीन आएगा)

प्राणायाम


योगासन

वज़न कैसे कम किया जाए

पिछले कुछ समय (कुछ वर्षों) से हमारे मन में ये विचार बार बार ठक ठक करता है कि भाई, तुम ओवरवेट हो तथा तुम्हारा वजन कम होना चाहिए। कभी कभी जोश-ए-जवानी में हफ्ता भर का डाइटिंग प्रोग्राम भी कर लेते हैं (पिछले चार साल में दो बार यह प्रोग्राम किया है)। दो चार किलो कम होता है पर जैसे ही नार्मल होते हैं फिर वापस आ जाता है। कभी कभार जिम, सुबह की कसरत, बाबा रामदेव का योगा तथा ईवनिंग वाक करते हैं पर वे भी नियमित नहीं हो पाते। कुल मिला कर हिसाब ये कि हमारे मन में काफी विचार करने तथा थोडा बहुत प्रयास करने के बाद भी वजन नें कुछ समय पहले सौ किलो की लक्ष्मण रेखा पार कर ली है। हमारे छोटे भाईसाहब आनंद को लगता है कि हमारा वेट बढ़ने का एक कारण हमारी कविता 'मुट्टम मंत्र' का नित्य पारायण है। उन्होंने हमें ये 'पतलम मंत्र' पढने की सलाह दी है, अपना तख़ल्लुस (हिचकी) भी रख लिया है।

'पतलम मंत्र'
छोड़ के आलस अब तुम भैया जल्दी जाओ जाग,
पहन कर री-बौक के जूते चार मील करो जौग,
चार मील करो जौग छोड़ दो आलू पूरी,
हलवाई की दुकान से बढ़ा लो घर की दूरी,

सुन लो मेरी बात को खड़े कर के कान,
मोटे भदभद नहीं जानते हैं पतलों की शान,
हैं पतलों की शान थे अपने गाँधी दुबले,
छोड़ो घी को खाओ खूब टमाटर उबले,

कुल मिलाकर बात ये मेरी जाओ मान,
हिरतिक बनो शान से भाई नहीं बनो अदनान,
नहीं बनो अदनान कि अबसे कम तुम खाओ,
दुबले होकर जीवन को तुम स्वस्थ बनाओ।

'हिचकी'

खैर, प्रश्न आज भी वहीं का वहीं है। हमनें यह सोचकर कि स्टेशन पर लगी मशीनें ग़लत वजन बताती हैं एक वज़न नापने की मशीन भी खरीद ली है, पर वह भी शायद सही वजन नहीं बताती। क्या आप में से किसी नें मोटापे से दुबलापे तक का सफर तय किया है। यदि हाँ तो अवश्य बताइएगा कि आपने क्या किया तथा हम क्या करें। क्या कोई ऐसा तरीका है जिसके द्वारा आराम से, आलसाते हुए वजन को नियमित रूप से कम किया जा सके?

बाकी हमनें सोचा है कि हम ब्लाग पर अपना वज़न अपडेट करते रहेंगे शायद यह एक मोटिवेशन के रूप में काम करे। सो जब आखिरी बार नापा गया था तो हमारा वजन था १०४ किलो (२३० पाउन्डस) जबकी कदानुसार हमारा सही वजन होना चाहिए लगभग ८५ किलो (१८७ पाउन्डस)।

पेड़ बरगद का कोई ढहने को बाकी न रहा

May 5, 2007

पेड़ बरगद का कोई ढहने को बाकी न रहा,
बूढ़े घुटनों की कसक सहने को बाकी न रहा,

पीली गौरैया के घर के सारे बच्चे उड़ गए,
घोसलों में आदमी रहने को बाकी न रहा,

भयंकर सूखा पड़ा फिर भावना के खेत में,
एक मोती आंख से बहने को बाकी न रहा,

कल वो मेरे नाम को सुनकर ज़रा शरमाई थी,
अब ग़ज़ल में और कुछ कहने को बाकी न रहा।