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डॉ उर्मिलेश की सुप्रसिद्ध कविता - वन्दे मातरम
Sep 27, 2010प्रेषक: अभिनव @ 9/27/2010 4 प्रतिक्रियाएं
Labels: भई वाह
एक छंद
Sep 4, 2010कल रात सपने में आई एक परछाई,
कह गयी मन की उमंग न बदलना,
झूठ की हवाएं चाहे जितनी चिरौरी करें,
सत्य बोलने का कभी ढंग न बदलना,
शब्द शब्द ब्रह्म मान रचना नवल गीत,
टूट टूट गाने की तरंग न बदलना,
कविता से तालियों की रंगत रहे न रहे,
तालियों से कविता का रंग न बदलना.
- अभिनव
प्रेषक: अभिनव @ 9/04/2010 7 प्रतिक्रियाएं
Labels: कविताएं
माखन चोर - डॉ बृजेन्द्र अवस्थी (जन्माष्टमी की अनेक शुभकामनाएं)
Sep 2, 2010आप सभी को जन्माष्टमी की अनेक शुभकामनाएं. डॉ बृजेन्द्र अवस्थी की निम्न कविता में बाल गोपाल द्वारा की गयी माखन चोरी की लीला का बहुत सुन्दर वर्णन पढने को मिलता है. यदि संभव हो तो इस कविता को बोल बोल कर पढ़ियेगा, आनंद दूना हो जाएगा.
माखन चोर - डॉ बृजेन्द्र अवस्थी
बिम्ब प्रतिबिंबित उन्हीं के मणि खम्बों पर, भेदिया के मन में संदेह भरने लगे,
भेद खुला जान छांछ उन्हें भी खिलने लगे, झर झर लोचनों से अश्रु झरने लगे,
कहना न मैया से बलिया लूं तुम्हारी भैया, बार बार बिनती कन्हैया करने लगे.
इतने में आ गयीं यशोदा माता उसी ठौर, अंग अंग छांछ लिपटाये नंदलाल थे,
माखन करों से प्रतिबिम्ब को खिला रहे थे, कुंचित कुटिल कुन्तलों के बाल व्याल थे,
खम्ब में स्वरुप, रूप में छवि भरे नयन, नयनों में अश्रु, अश्रुओं में चित्रजाल थे,
मानो क्षीर सिन्धु की नहाई गन माल पर रूप भरे मोती रहे उगल मराल थे.
आया देख माता को अकस्मात् उसी ठौर, सूझी ये नवल लीला नवल किशोर को,
बिम्ब को दिखा के बोल उठे देख देख मैया, यह ढीठ घूर जो रहा है मेरी ओर को,
अभी अभी माखन चुरा के यही खा रहा था, देख व्यर्थ अश्रु से भरे हैं दृग कोर को,
पोर दाबे मुख में हंसी में तो खड़ी विभोर, क्यों नहीं पकड़ती है माखन के चोर को.
मेरे हाथ मुख में लगा ये छांछ देख कर, मैया क्या इसी ने तेरा चित्त भरमाया है,
कहूं सही बात मेरी बात मान मेरी अम्मा, अभी छीना झपटी में इसी ने लगाया है,
तुझको प्रतीति नहीं तो निहार नवनीत उसके ही पास है जो उसी ने चुराया है,
खाया कुछ, कुछ अभी हाथ में बचाया, कुछ मुख पे लगाया, कुछ भूमि पे गिराया है.
प्रेषक: अभिनव @ 9/02/2010 1 प्रतिक्रियाएं
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