महा लिख्खाड़
-
‘आमतौर पर’ ख़ास चर्चा1 day ago
-
झूल गये हैं कड़े प्रसाद4 weeks ago
-
प्रेम ही सत्य है1 month ago
-
-
बाग में टपके आम बीनने का मजा2 months ago
-
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है10 months ago
-
पितृ पक्ष1 year ago
-
-
व्यतीत4 years ago
-
Demonetization and Mobile Banking7 years ago
-
मछली का नाम मार्गरेटा..!!9 years ago
नाप तोल
1 Aug2022 - 240
1 Jul2022 - 246
1 Jun2022 - 242
1 Jan 2022 - 237
1 Jun 2021 - 230
1 Jan 2021 - 221
1 Jun 2020 - 256
नेहरू जी के निधन पर अटल जी के श्रद्धासुमन।
Aug 18, 2018
नेहरू जी के निधन पर अटल जी के श्रद्धासुमन।
———————————————————————
अध्यक्ष महोदय,
एक सपना था जो अधूरा रह गया। एक गीत था जो गूँगा हो गया। एक लौ थी जो अनन्त में विलीन हो गयी। सपना था, एक ऐसे संसार का, जो भय और भूख से रहित होगा। गीत था, एक ऐसे महाकाव्य का, जिसमें गीता की गूँज और गुलाब की गन्ध थी। लौ थी, एक ऐसे दीपक की, जो रात भर जलता रहा, हर अँधेरे से लड़ता रहा और हमें रास्ता दिखाकर, एक प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गया।
मृत्यु ध्रुव है। शरीर नश्वर है। कल, कंचन की जिस काया को हम चंदन की चिता पर चढ़ाकर आये, उसका नाश निश्चित था। लेकिन क्या यह ज़रूरी था कि मौत इतनी चोरी छिपे आती? जब संगी-साथी सोये पड़े थे, जब पहरेदार बेख़बर थे, तब हमारे जीवन की एक अमूल्य निधि लुट गयी। भारत माता, आज शोकमग्ना है - उसका सबसे लाड़ला राजकुमार खो गया। मानवता, आज खिन्नमना है - उसका पुजारी सो गया। शान्ति, आज अशान्त है - उसका रक्षक चला गया। दलितों का सहारा छूट गया। जन-जन की आँख का तारा टूट गया। यवनिका पात हो गया। विश्व के रंगमंच का प्रमुख अभिनेता अपना अन्तिम अभिनय दिखाकर अन्तर्ध्यान हो गया।
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में भगवान राम के सम्बन्ध में कहा है कि वे असम्भवों के समन्वय थे। पंडितजी के जीवन में महाकवि के उसी कथन की एक झलक दिखाई देती है। वह शान्ति के पुजारी, किन्तु क्रान्ति के अग्रदूत थे; वे अहिंसा के उपासक थे, किन्तु स्वाधीनता और सम्मान की रक्षा के लिए हर हथियार से लड़ने के हिमायती थे। वे व्यक्तिगत स्वाधीनता के समर्थक थे किन्तु आर्थिक समानता लाने के लिए प्रतिबद्ध थे। उन्होंने समझौता करने में किसी से भय नहीं खाया, किन्तु किसी से भयभीत होकर समझौता नहीं किया। पाकिस्तान और चीन के प्रति उनकी नीति इसी अद्भुत सम्मिश्रण की प्रतीक थी। उसमें उदारता भी थी, दृढ़ता भी थी। यह दुर्भाग्य है कि इस उदारता को दुर्बलता समझा गया, जबकि कुछ लोगों ने उनकी दृढ़ता को हठवादिता समझा।
मुझे याद है, चीनी आक्रमण के दिनों में जब हमारे पश्चिमी मित्र इस बात का प्रयत्न कर रहे थे कि हम कश्मीर के प्रश्न पर पाकिस्तान से कोई समझौता कर लें, तब एक दिन, मैंने उन्हें बड़ा क्रुद्ध पाया। जब उनसे कहा गया कि कश्मीर के प्रश्न पर समझौता नहीं होगा तो हमें दो मोर्चों पर लड़ना पड़ेगा तो वो बिगड़ गये और कहने लगे कि अगर आवश्यकता पड़ेगी तो हम दोनों मोर्चों पर लड़ेंगे। किसी दबाव में आकर वो बातचीत करने के खिलाफ़ थे।
महोदय,
जिस स्वतंत्रता के वे सेनानी और संरक्षक थे, आज वह स्वतंत्रता संकटापन्न है। सम्पूर्ण शक्ति के साथ हमें उसकी रक्षा करनी होगी। जिस राष्ट्रीय एकता और अखंडता के वे उन्नायक थे, आज वह भी विपदग्रस्त है। हर मूल्य चुकाकर हमें उसे कायम रखना होगा। जिस भारतीय लोकतंत्र की उन्होंने स्थापना की, उसे सफल बनाया, आज उसके भविष्य के प्रति भी आशंकाएँ प्रकट की जा रही हैं। हमें अपनी एकता से, अनुशासन से, आत्म-विश्वास से, इस लोकतंत्र को सफल करके दिखाना है। नेता चला गया। अनुयायी रह गये। सूर्य अस्त हो गया। तारों की छाया में हमें अपना मार्ग ढूँढना है। यह एक महान परीक्षा का काल है। यदि हम सब अपने को समर्पित कर सकें, एक ऐसे महान उद्देश्य के लिए जिसके अन्तर्गत भारत सशक्त हो, समर्थ और समृद्ध हो और स्वाभिमान के साथ विश्व शांति की चिरस्थापना में अपना योग दे सके तो हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने में सफल होंगे। संसद में उनका अभाव कभी नहीं भरेगा। शायद, तीन मूर्ति को उन जैसा व्यक्ति कभी भी अपने अस्तित्व से सार्थक नहीं करेगा। वह व्यक्तित्व, वह ज़िन्दादिली, विरोधी को भी साथ लेकर चलने की वह भावना, वह सज्जनता, वह महानता शायद निकट भविष्य में देखने को नहीं मिलेगी। मतभेद होते हुए भी उनके महान आदर्शों के प्रति, उनकी प्रमाणिकता के प्रति, उनकी देशभक्ति के प्रति, और उनके अटूट साहस के प्रति हमारे हृदय में आदर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
इन्हीं शब्दों के साथ मैं उस महान आत्मा के प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
- अटल बिहारी वाजपेयी, 29 मई 1964, लोकसभा
प्रेषक: अभिनव @ 8/18/2018 0 प्रतिक्रियाएं
भीड़तंत्र
Aug 14, 2018
जात पात है स्वतंत्र,
नफरतें स्वतंत्र हैं,
छद्म वेष में स्वतंत्र,
दुष्टता के मंत्र हैं,
नफरतें स्वतंत्र हैं,
छद्म वेष में स्वतंत्र,
दुष्टता के मंत्र हैं,
यत्र तत्र क्रूरता है,
धूर्तता स्वतंत्र है,
कहो! क्या राष्ट्र देवियों की,
अस्मिता स्वतंत्र है,
धूर्तता स्वतंत्र है,
कहो! क्या राष्ट्र देवियों की,
अस्मिता स्वतंत्र है,
जंग खा रहा हमारी,
एकता का यंत्र है,
लोकतंत्र है बँधा,
स्वतंत्र भीड़तंत्र है,
एकता का यंत्र है,
लोकतंत्र है बँधा,
स्वतंत्र भीड़तंत्र है,
जो भीड़तंत्र से इसे स्वतंत्र न कराओगे,
स्वतंत्रता दिवस अधिक समय नहीं मनाओगे।
स्वतंत्रता दिवस अधिक समय नहीं मनाओगे।
© अभिनव शुक्ल
प्रेषक: अभिनव @ 8/14/2018 0 प्रतिक्रियाएं
Subscribe to:
Posts (Atom)