नज़ीर का अर्थ होता है बराबर,
बेनज़ीर का मतलब हुआ जिसकी कोई बराबरी न कर सके,
जब उसके जाने की ख़बर सुनी तो दुःख हुआ,
ऐसा नही था की उसके होने या न होने से मुझे कोई फर्क पड़ता है,
फर्क तो पाकिस्तान को भी नही पड़ता है,
थोडी देर हाय हाय के नारे लगा कर थक जायेंगे,
दो चार दिन उछल कूद कर सब बैठ जायेंगे,
और तलाश करने लगेंगे किसी दूसरी बेनज़ीर में,
किसी शिया को, किसी सिन्धी को, या किसी मुहाजिर को,
क्या अचरज की कभी पाकिस्तान हमारे भारत का हिस्सा था,
इंसान में जाति धर्म क्षेत्र ढूँढने में कोई हमारी बराबरी कर सकता है क्या,
खैर, प्रतियोगिता परीक्षा हेतु एक नया प्रश्न तैयार हो गया है,
वाद विवाद को एक और विषय,
फिर,
एक और बम ब्लास्ट.
महा लिख्खाड़
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एक और बम ब्लास्ट
Dec 29, 2007प्रेषक: अभिनव @ 12/29/2007
Labels: कविताएं
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3 प्रतिक्रियाएं:
आप को फर्क पड़े न पड़े, पर इस समय में बेनजीर के न होने ने पाकिस्तान और भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं समूचे विश्व के लिए बड़ा फर्क पैदा कर दिया है।
संसार में छोटी बड़ी जो भी घटना घटती है वह किसी ना किसी रूप में सबको प्रभावित करती है । हम कभी भी यह नहीं सोच सकते कि इससे मुझे क्या अन्तर पड़ता है । पड़ोसी का सुख दुख तो हमें और भी अधिक प्रभावित करता है ।
यदि हम अपनी प्रगति के साथ साथ आदिवासियों व अन्य पिछड़े हुए तबकों को भी प्रगति की ओर ले जाते तो शायद नक्सलवादी ना होते । यदि हमने उत्तर पूर्व के प्रदेशों को अपने साथ अच्छे से जोड़ लिया होता तो ये अलगाववाद ना पनपा होता ।
घुघूती बासूती
mujhe nahi lagata ki benajeer ke hone na hone se hume koi farak padata hai, sach me dekha jaye to benajeer ne hi J&K me terrorism ki shuruaat ki thi, uska ant mujhe bhasmasur ki yaad dilata hai
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