उलझा हुआ हूँ वक्त के बोझिल सवाल में,
पत्थर निकल रहे हैं बहुत आज दाल में,
गिद्धों को उसने टीम का सरदार कर दिया,
लो फंस गई भोली सी चिरइया भी जाल में,
बाबर को नहीं देखा है मैंने कभी मगर,
मस्जिद ज़रूर देखी है इक ख़स्ता हाल में,
मुद्दत से कह रहे हैं जो मंदिर बनाएँगे,
उनसे सड़क न एक बनी पाँच साल में।
महा लिख्खाड़
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६ दिसंबर - बाबर को नहीं देखा है मैंने
Dec 6, 2007प्रेषक: अभिनव @ 12/06/2007
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1 प्रतिक्रियाएं:
यह देश की एकता का स्वर्णिम दिन होता जब मुस्लिम कहते लो बना लो रामजी का मन्दीर.
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