इधर अभिव्यक्ति पर हमारा एक व्यंग्य छपा है। वैसे हमको व्यंग्य लिखने का शहऊर नहीं है, पर फिर भी ऊट पटांग कुछ लिख दिया था, यदि थोड़ा चटना चाहें तो इस लिंक पर पढ़ सकते हैं।
यहाँ सिएटल के पास एक जगह है क्रेटर लेक। इधर अपने कुछ मित्रों के साथ वहाँ जाने का अवसर प्राप्त हुआ। वहाँ पहुँच कर ऐसा लगा मानसरोवर शायद ऐसा ही रहा होगा। कुछ चित्र नीचे प्रेषित कर रहे हूँ।
हरी हरी वसुंधरा कि नीला नीला ये गगन, जैसे बादलों की पालकी उठा रहा पवन,
दिशाएँ देखो रंग भरी, चमक रहीं उमंग भरी,ये किसने फूल फूल पर किया सिंगार है,
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार..., ये कौन चित्रकार है....
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अभिव्यक्ति पर व्यंग्य - अमलतास अर्थात और कुछ चित्र
Jun 20, 2007प्रेषक: अभिनव @ 6/20/2007
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6 प्रतिक्रियाएं:
बढ़िया
अब अगर तुम व्यंग्य लिखोगे तो पढ़ना हमारी मज़बूरी हो ही जाती है. बहरहाल चित्र बहुत सुन्दर हैं ( शायद व्यंग्य से ज्यादा- क्योंकि यथार्थ दिखलाते हैं :-)))
सुन्दर नजारों के खूबसूरत चित्र दिखाने के लिए मेहरबानी ।
व्यंग्य लेख पढ़ा। बहुत अच्छा लगा! भाई-भाई की बात! कविता भी अच्छी थी। ये चित्र इनके बारे में क्या कहें? खूबसूरत!
वह बोला, "आम के पेड़ के नीचे बैठ कर जब लोग ताश खेलते हैं तब उस प्रक्रिया को अमलतास कहते हैं।"
मैंने कहा, "यदि इसका संबंध ताश से है तो फिर उसे तो अमलताश कहना चाहिए था।"
वो बोला, "हाँ हाँ तमाम सारे लोग अमलतास को अमलताश कहते हैं। अमलताश कहो या अमलतास बात तो एक ही है समझे गोबरदास।"
बहुत सुंदर व्यंग है और कविता भी ....अच्छा लिखा है ...बधाई
मेरी बेटी ऋचाकी कवीता पर आपकी कोमेन्ट पढकर बहुत खुशी हुइ. आभार .
यदी आप गुजराती पढ सकते हैं, तो मेरे और ब्लोग भी देखीयगाजी. खास तौर पर 'अंतरनी वाणी' पढनेसे आपको बहोत मजा आयगा.
आपने सीयेटलका सरोवर भी दीखा दीया. वहां कभी नहीं आया. आभार .
मैं ऋचाके साथ आर्लींग्टन, डलास रहता हुं.
( गुजरातीकी नुतन लेखन पध्धतीमें यह लीखा है.आशा है आप नाराज नहीं होंगे.)
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