बोले जब फांसी वाला फन्दा चूमा था,
मन में भारत माता की केवल मूरत थी,
आँखों में आज़ादी का सपना झूमा था।
घर में ही नारे गूँज रहे बर्बादी के,
वह माँ घायल है अपनों के ही शूलों से,
अब भी गरीब को छिप छिप रोना पड़ता है,
मज़हब का कैसा रूप है, बैर सिखाता है,
जो रक्षक हैं वे भक्षक बन कर सोते हैं,
क्या इसकी खातिर दी थी मैंने कुर्बानी,
तुम बदलोगे, बदलेगा भारत देश तभी,
या वासंती चोला मुझको वापस कर दो,
या फिर कमरे से मेरा चित्र हटा दो तुम।
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