दुष्टता है, इसका चलन मत कीजिए,
रावण की नीचताएँ इतनी ही प्रिय हैं तो,
नगरी में रावण दहन मत कीजिए,
तर्क औ' वितर्क, वाद प्रतिवाद ठीक किंतु,
व्यर्थ के कुतर्क का वहन मत कीजिए,
दानवाधिकार वाली तलवार भांज कर,
मानवाधिकार का हनन मत कीजिए।
हम उनके मंसूबों को जड़ से ही मिटाने वाले हैं।
वीर शिवा के वंशज भी हैं, ध्वज फहराने वाले हैं।
राष्ट्रद्रोह करने वालों को धूल चटाने वाले हैं।
हम उनकी बर्बादी का पैगाम सुनाने वाले हैं।
लाल सलामी ठोंक ठोंक कर चीख रहे जो रातों में,
माँ का दूध लजाने वाली कैसी शिक्षा पाते हैं,
आस्तीन के साँप भला ये किस विद्यालय जाते हैं?
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