वे सभी,
जिन्हें ज़रा सी आहट पर,
सताने लगती है वैचारिकता की कब्ज़,
किसी के छींकने पर,
होने लगता है असहिष्णुता का भ्रम,
अग्रवाल कालेज में नहीं पढ़वाते हैं अपने बच्चों को,
न ही रुकते हैं महाराजा अग्रसेन के नाम पर बनी किसी धर्मशाला में,
योगा को जो समझते हैं,
ब्राह्मणों की साज़िश,
राम को समझते हैं,
सिर्फ क्षत्रियों का राजा,
बाबा रामदेव के हर उत्पाद को,
जो मिटा देना चाहते हैं उसकी जड़ से,
हाय जाति, हाय जाति करते इन लोगों को,
दिखाई नहीं देती,
अपने घर में रहने वाले,
कश्मीरी शरणार्थियों की पीड़ा,
उफ़! ये बुद्धिजीवी, वामपंथी और महान विचारक,
इस गर्त के ज़िम्मेदार ये भी हैं,
दलितों और मुसलामानों को चारा समझने वाले ये लोग,
मानव के रूप में साक्षात भस्मासुर हैं।
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