पुनः प्रेषित - ज़रा बदलाव के साथ
हम गुनहगार हों, चाहे बीमार हों,
चाहे लाचार हों, चाहे बेकार हों,
जो भी हों चाहे, जैसे भी हों दोस्तों,
साथ ऐसे रहें, जैसे परिवार हों,
कुछ नियम से बहे स्वस्थ आलोचना,
हो दिशा सूर्योन्मुख सकारात्मक,
व्यर्थ में जो करे बात विघटनमुखी,
उससे क्या तर्क हों, आर हों, पार हों,
हम पढें, हम लिखें, सबसे ऊँचा दिखें,
ज़ोर पूरा लगाकर, वहीं पर टिकें,
उसपे ये शर्त रखी है सरकार नें,
फैसले सब यहीं बीच मंझधार हों,
ये भरोसा है हमको जड़ों पर अभी,
हमको आंधी से ख़तरा नहीं है मगर,
ये ज़रूरी है सबके लिए जानना,
कब रहें बेखबर, कब ख़बरदार हों,
शब्द हल्के रहें, चाहे भारी रहें,
भावनाओं के संचार जारी रहें,
अच्छे ब्लागर बनें न बनें दोस्तों,
अच्छा इंसान बनने का आधार हों.
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साथ ऐसे रहें, जैसे परिवार हों,
Oct 5, 2009प्रेषक: अभिनव @ 10/05/2009
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4 प्रतिक्रियाएं:
सुन्दर सोच आपकी और हां आप भुलावे में नहीं आप कवी हो
ये तो इस बार के तरही की बहर लग रही है । और पिछले तरही का काफिया । बहुत सुंदर गीत बन पड़ा है । तीसरे छंद में रक्खी को रखी टाइप कर दिया है उससे मात्रा कम हो रही है ।
अभिनव जी,
ये बन्द बहुत पसन्द आये।
ये भरोसा है हमको जड़ों पर अभी,
हमको आंधी से ख़तरा नहीं है मगर,
ये ज़रूरी है सबके लिए जानना,
कब रहें बेखबर, कब ख़बरदार हों,
शब्द हल्के रहें, चाहे भारी रहें,
भावनाओं के संचार जारी रहें,
अच्छे ब्लागर बनें न बनें दोस्तों,
अच्छा इंसान बनने का आधार हों.
बहुत सुन्दर विचार! अच्छा इंसान बनना आदमी की पहली प्राथमिकता होनी चाहिये प्रत्येक क्षेत्र में।
बधाई!
सादर
Wah...
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