कोई फर्क नहीं पड़ता है,
मेरे कुछ लिखने से,
या तुम्हारे कुछ पढ़ने से,
बातें बनाने से,
या गाने गाने से,
दोस्ती की कसमें खाने से,
या दुशमनी का ढोल बजाने से,
फर्क पड़ता है,
केवल कुछ कर दिखाने से,
सकल पदार्थ हैं जग मांही,
करमहीन नर पावत नाही.
जै महाराष्ट्र,
जै शिवाजी,
जै भी कितना खतरनाक शब्द है.
महा लिख्खाड़
-
सियार6 days ago
-
मैं हूं इक लम्हा2 weeks ago
-
दिवाली भी शुभ है और दीवाली भी शुभ हो4 weeks ago
-
-
बाग में टपके आम बीनने का मजा4 months ago
-
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है1 year ago
-
पितृ पक्ष1 year ago
-
-
व्यतीत4 years ago
-
Demonetization and Mobile Banking7 years ago
-
मछली का नाम मार्गरेटा..!!9 years ago
नाप तोल
1 Aug2022 - 240
1 Jul2022 - 246
1 Jun2022 - 242
1 Jan 2022 - 237
1 Jun 2021 - 230
1 Jan 2021 - 221
1 Jun 2020 - 256
खतरनाक जै
Oct 25, 2008प्रेषक: अभिनव @ 10/25/2008
Labels: कविताएं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 प्रतिक्रियाएं:
जै अभिनव. आभार.
क्या बात है अभिनव जी....क्या बात कही है.सच में ये "जै" कितना खतरनाक शब्द हो गया है.
इन नपे-तुले शब्दों में पूरी तस्वीर उतारने वाली ये रचना....बहुत सुंदर
जै जै! बोल्ड फॉण्ट साइज बहत्तर में!
नमस्ते अभिनव ,
कोई भी शब्द बुरा नहीं होता , कोई भी भाषा खतरनाक नहीं होती , उसे बुरा बनाते हैं उसके पीछे छुपे भाव ! देखो, आग दिया भी जलाती है, आग 'आग' भी लगा सकती है | है ना ?
कविता बहुत ही अच्छी है |
दिवाली की शुभकामनाओं सहित ,
अर्चना दीदी
Post a Comment