देवल आशीष की प्रशंसा शायद पहली बार मैंने डा उर्मिलेश से सुनी थी. लखनऊ में एक बार उनको सुनने का सौभाग्य भी मिला है, इधर यू ट्यूब पर उनको सुनने को मिला तो बड़ा अच्छा लगा. आप भी सुनिए.
विश्व को मोहमयी महिमा के असंख्य स्वरुप दिखा गया कान्हा,
सारथी तो कभी प्रेमी बना तो कभी गुरु धर्म निभा गया कान्हा,
रूप विराट धरा तो धरा तो धरा हर लोक पे छा गया कान्हा,
रूप किया लघु तो इतना के यशोदा की गोद में आ गया कान्हा,
चोरी छुपे चढ़ बैठा अटारी पे चोरी से माखन खा गया कान्हा,
गोपियों के कभी चीर चुराए कभी मटकी चटका गया कान्हा,
घाघ था घोर बड़ा चितचोर था चोरी में नाम कमा गया कान्हा,
मीरा के नैन की रैन की नींद और राधा का चैन चुरा गया कान्हा,
राधा नें त्याग का पंथ बुहारा तो पंथ पे फूल बिछा गया कान्हा,
राधा नें प्रेम की आन निभाई तो आन का मान बढ़ा गया कान्हा,
कान्हा के तेज को भा गई राधा के रूप को भा गया कान्हा,
कान्हा को कान्हा बना गई राधा तो राधा को राधा बना गया कान्हा,
गोपियाँ गोकुल में थी अनेक परन्तु गोपाल को भा गई राधा,
बाँध के पाश में नाग नथैया को काम विजेता बना गई राधा,
काम विजेता को प्रेम प्रणेता को प्रेम पियूष पिला गई राधा,
विश्व को नाच नाचता है जो उस श्याम को नाच नचा गई राधा,
त्यागियों में अनुरागियों में बडभागी थी नाम लिखा गई राधा,
रंग में कान्हा के ऐसी रंगी रंग कान्हा के रंग नहा गई राधा,
प्रेम है भक्ति से भी बढ़ के यह बात सभी को सिखा गई राधा,
संत महंत तो ध्याया किए माखन चोर को पा गई राधा,
ब्याही न श्याम के संग न द्वारिका मथुरा मिथिला गई राधा,
पायी न रुक्मिणी सा धन वैभव सम्पदा को ठुकरा गई राधा,
किंतु उपाधि औ मान गोपाल की रानियों से बढ़ पा गई राधा,
ज्ञानी बड़ी अभिमानी पटरानी को पानी पिला गई राधा,
हार के श्याम को जीत गई अनुराग का अर्थ बता गई राधा,
पीर पे पीर सही पर प्रेम को शाश्वत कीर्ति दिला गई राधा,
कान्हा को पा सकती थी प्रिया पर प्रीत की रीत निभा गई राधा,
कृष्ण नें लाख कहा पर संग में न गई तो फिर न गई राधा.
कवि: देवल आशीष
महा लिख्खाड़
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देवल आशीष - एक सौम्य, प्रतिभावान और सशक्त कवि - देखिये, पढिये और सुनिए
Oct 2, 2008प्रेषक: अभिनव @ 10/02/2008
Labels: भई वाह
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4 प्रतिक्रियाएं:
सचमुच एक ऐसा कवि छांटा है आज के दौर का सबसे अद्भुत कवि है । जब वो गाता है तो ऐसा लगता है कि सुनते ही रहो सुनते ही रहो । पिछले साल एक साथ दो कवि सम्मेलनों में एक राजाखेड़ा और दूसरा ग्वालियर में देवल के साथ पढ़ने का मौका मिला और पहली बार सुना भी वहीं । एक ही बात कहूंगा कि आशीष के छंद ऐसा लगता है जैसे सोने के तारों को शहद में डुबो कर की गई मीनाकारी है । उस पर आशीष की आवाज़ और लहजा दोनों ही अनूठे हैं । मैं अभी आशीष को इस पोस्ट के बारे में सूचना भी दे रहा हूं ताकि वो भी इसे पढ़ सकें ।
अब आपकी खबर आप कहां हैं कक्षाओं में नहीं दीख रहे
बहुत बढ़िया लाये हैं, आनन्द आ गया. आजकल कम दिख रहे हो??
देवल आशीष जी मंचो के बडे कवि थे । उनका जाना मंचो को वो खालिपन दे गया हैं जो शायद अब कभी भी नहीं भर फाएगा । उनके लिखे व गाए गए गीत बस उनकी याद दिलाते रहेंगे ।
कवि देवल आशीष जी को श्रदधा सुमन...
देवल आशीष जी मंचो के बडे कवि थे । उनका जाना मंचो को वो खालिपन दे गया हैं जो शायद अब कभी भी नहीं भर फाएगा । उनके लिखे व गाए गए गीत बस उनकी याद दिलाते रहेंगे ।
कवि देवल आशीष जी को श्रदधा सुमन...
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