प्रवीण शुक्ल जी से पहली बार मिलने का सुअवसर मुझे १९९९ में बरेली के संजय गाँधी सभागार में हुए कवि सम्मलेन में प्राप्त हुआ था. पहली बार ही उनकी रचनायें सुनकर बहुत अच्छा लगा. इतनी सरल भाषा में सीधी सीधी बात जो सीधे दिल में उतर जाए. अगली मुलाक़ात हैदराबाद में दो वर्ष बाद हुयी तो उनको सुनने का आनंद दुगना आया. सामान्यतः कवि अपनी वही कविताएँ हर मंच से पढता है, पर प्रवीण जी की हर कविता नई थी. फिर दो वर्ष बाद उनसे बंगलोर में भेंट हुयी तो एक बार फिर सब नई कविताएँ सुनने को मिलीं. एक के बाद एक उनकी लेखनी अच्छी कविताएँ लिख रही है और सबको सुना रही है.
उनकी गांधीगिरी पर लिखी हुयी पुस्तक भी इधर काफ़ी लोकप्रिय हुयी है. अभिव्यक्ति पर इसपर लिखा हुआ लेख आप यहाँ क्लिक कर के पढ़ सकते हैं.
आइये सुनें इस बहुआयामी प्रतिभासंपन्न व्यंगकार की एक कविता;
कविवर प्रवीण शुक्ल - एक अद्भुत बहुआयामी प्रतिभासंपन्न व्यंगकार
Oct 19, 2008प्रेषक: अभिनव @ 10/19/2008
Labels: भई वाह
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