पूरे देश के लहू में जोश की रवानी हेतु,
'इन्कलाब ज़िन्दाबाद' गाया है भगत नें,
लूट पाट कत्ल किसी धर्म के नहीं हैं अंश,
धर्म सिर्फ प्यार बतलाया है भगत नें,
जीते जी तो मरने की आदत है हमें पर,
मर कर जीना सिखलाया है भगत नें,
मन में हमारे इसी लिए आज स्थान,
देवताओं के समान पाया है भगत नें।
महा लिख्खाड़
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भगत सिंह अमर रहें - इन्कलाब ज़िन्दाबाद
Mar 24, 2006प्रेषक: अभिनव @ 3/24/2006
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2 प्रतिक्रियाएं:
बाक़ी सब तो ठीक है। लेकिन भगत सिंह निरीश्वरवादी थे और किसी भी धर्म में आस्था नहीं रखते थे, इसलिये 'धर्म' वाली पंक्तियाँ कुछ सही नहीं लगीं।
प्रतीक जी आपकी बात सही है भगत सिंह के विषय में, सुधार करने का प्रयास करूंगा।
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