मन का रावण महा ढीठ है,
अपने मन की करता है,
कोई अंकुश नहीं मानता,
राम से भी न डरता है,
धीरे धीरे लंका नगरी,
और अयोध्या तक आकर,
अपना अधिकार जताता है,
स्वर्ण मृगों की धमाचौकड़ी,
आपहरण का कारण है,
जो आराध्य हैं अपने उनका,
जीवन एक उदाहरण है,
तुलसी बाबा लिख गए मानस,
अमल अचल मन त्रोन समाना,
जिसका शब्द शब्द अमृत है,
उसको प्यारे भूल न जाना.
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