महा लिख्खाड़
-
संगम में भटका भल्लू5 days ago
-
-
-
बाग में टपके आम बीनने का मजा6 months ago
-
गणतंत्र दिवस २०२०5 years ago
-
राक्षस5 years ago
-
-
इंतज़ामअली और इंतज़ामुद्दीन5 years ago
-
कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण और अर्जुन7 years ago
-
Demonetization and Mobile Banking8 years ago
-
मछली का नाम मार्गरेटा..!!10 years ago
नाप तोल
1 Aug2022 - 240
1 Jul2022 - 246
1 Jun2022 - 242
1 Jan 2022 - 237
1 Jun 2021 - 230
1 Jan 2021 - 221
1 Jun 2020 - 256
सास बहू और टेबिल टेनिस
Sep 20, 2012
मुझे अपनी मां में,
और अपनी पत्नी की सास में,
अंतर दिखाई देने लगा है,
माँ,
ईश्वर का रूप है,
सर्दियों की गुनगुनी धूप है,
सास,
कुछ अनकहा आभास है,
एक असहज एहसास है,
खरी खरी बात, कुछ यहाँ वहां नहीं,
माँ में सास नहीं है, सास में माँ नहीं.
मुझे एक बेटी में,
और अपनी माँ की बहू में भी,
अंतर
दिखाई देने लगा है,
बेटी,
खुशबू से घर महकाती है,
सितारों सी जगमगाती है,
बहू,
मन की बात कहते डरती है,
पीछे खुटुर -
पुटुर करती है,
सीधी सीधी बात, कोई लाग लपेटी नहीं,
बेटी में बहू नहीं है, बहू में बेटी नहीं.
ऐसे में अपना होता है कुछ ऐसा ही हाल,
जैसे दो चीनियों के मध्य फँसी को कोई पिंग पांग बाल,
इससे पहले कि बाल कि रेड़ पिट जाए,
मैं चाहता हूँ कि ये अंतर मिट जाए,
पर, इसके लिए माँ को सिर्फ माँ रहना होगा,
और बहू को बिटिया बन कर जीवन कि धारा में बहना होगा,
अन्यथा, युगों युगों से चल रहा खेल जारी रहेगा,
तथा, माँ पर सास का, और बेटी पर बहू के प्रकोप तारी रहेगा.
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः !
प्रेषक: अभिनव @ 9/20/2012
Labels: कविताएं, हास्य कविता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 प्रतिक्रियाएं:
Post a Comment