इधर सिएटल में खूब बरफ पड़ी है. सारा माहौल हिममय हो गया है. इसी पर कुछ तुकबंदी हुयी है; अपने इधर के मौसम, कुछ यूँ बदल रहे हैं, हिमपात हो रहा है, आलाव जल रहे हैं, बादल नें बिजलियों से अपनी कमर कसी है, सूरज के सातों घोड़े बच कर निकल रहे हैं, सड़कों पे चल रही है, दुनिया संभल संभल कर, ज़्यादा संभलने वाले, ज़्यादा फिसल रहे हैं, उजली सफ़ेद चादर, हर और बिछ गई है, पेडों की पत्तियों के, आंसू निकल रहे हैं, कमरे के हीटरों की औकात बढ़ गई है, चाय की प्यालियों के किस्से उबल रहे हैं, कल ये बरफ गलेगी, कल ये उगेगा सूरज, कल ठीक होगा सबकुछ, अरमान पल रहे हैं. _______________________ Abhinav Shukla 206-694-3353 P Please consider the environment. |
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हिमपात हो रहा है - एक तुकबंदी
Dec 23, 2008प्रेषक: अभिनव @ 12/23/2008
Labels: कविताएं
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5 प्रतिक्रियाएं:
इत्तिफाक से हमने भी आज
हमारे जाल घर पर
खूब हिमपात की तस्वीरेँ
लगाईँ हैँ देखियेगा
कविता के साथ जुगलबँदी हो जायेगी :)
- लावण्या
कल ये बरफ गलेगी, कल ये उगेगा सूरज,
कल ठीक होगा सबकुछ, अरमान पल रहे हैं.
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सही है, उम्मीद पर ही कायम है दुनियाँ।
इसी उम्मीद पर तो दुनिया कायम है !
'ज़्यादा संभलने वाले ज़्यादा फिसल रहे हैं'
'कल ठीक होगा सब कुछ अरमान पल रहे हैं'
बहुत सुन्दर और उम्मीद की हरारत से भरपूर।
बधाई।
बहुत अच्छे अभिनव भाईया...यह तुकबंदी नहीं अच्छा-भला काव्य है...बहुतई बरफ़ है भाई..गिरते ही जमजात है ससुरी..गाड़ी संभाल के चलियबे...अच्छा लगा....बधाई
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