चाहे छुप कर करो धमाके, या गोली बरसा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ,
किसको बुरा कहें हम आख़िर किसको भला कहेंगे,
जितनी भी पीड़ा दोगे तुम सब चुपचाप सहेंगे,
डर जायेंगे दो दिन को बस दो दिन घबरायेंगे,
अपना केवल यही ठिकाना हम तो यहीं रहेंगे,
तुम कश्मीर चाहते हो तो ले लो मेरे भाई,
नाम राम का तुम्हें अवध में देगा नहीं दिखाई,
शरियत का कानून चलाओ पूरी भारत भू पर,
ले लो भरा खजाना अपना लूटो सभी कमाई,
जय जिहाद कर भोले मासूमों का खून बहा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ,
वंदे मातरम् जो बोले वो जीभ काट ली जाए,
भारत को मां कहने वाले को फांसी हो जाए,
बोली में जो संस्कृत के शब्द किसी के आयें,
ज़ब्त कर संपत्ति उसकी तुरत बाँट ली जाए,
जो जनेऊ को पहने वो हर महीने जुर्माना दे,
तिलक लगाने वाला सबसे ज़्यादा हर्जाना दे,
जो भी होटल शाकाहारी भोजन रखना चाहे,
वो हर महीने थाने में जा कर के नजराना दे,
मन भर के फरमान सुनाओ जीवन पर छा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ,
यदि तुम्हें ये लगता हो हम पलट के वार करेंगे,
लड़ने की खातिर तलवारों पर धार करेंगे,
जो बेबात मरे हैं उनके खून का बदला लेंगे,
अपने मन के संयम की अब सीमा पार करेंगे,
मुआफ़ करो हमको भाई तुम ऐसा कुछ मत सोचो,
तुम ही हो इस युग के नायक चाहे जिसे दबोचो,
जब चाहो बम रखो नगरी नगरी आग लगाओ,
असहाय सी गाय सा देश है इसको मारो नोचो,
हिंदू सिख इसाई मुस्लिम दंगे भी भड़का जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ.
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आत्मसमर्पण गीत - हम हैं भेड़ बकरियों जैसे
Nov 29, 2008प्रेषक: अभिनव @ 11/29/2008
Labels: कविताएं
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10 प्रतिक्रियाएं:
aji sahab memane hain memane. narayan narayan
यह समय है कश्मीरी आतंकी ट्रेनिंग कैम्पों पर बिना समय गवाए पूरी शक्ति के साथ सैन्य कार्यवाही का ! एक मुक्तिवाहनी सेना के हस्तक्षेप की !
बढिया चोट की है।आज यही सब तो हो रहा है।तभी तो यह हाल है।
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
वंदेमातरम्
बहुत खूब। साधुवाद
मर्म पर चोट करने वाली सशक्त रचना है। हमारा
देशप्रेम और स्वाभिमान मर गया है। भारत के लिये ये एक शर्मनाक स्थिति है।
हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी।
आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी ।।
शकुन्तला बहादुर
Abhinav JI
Bahut hi real kavita likhi hai.
Yahi sab kuch ho raha hai desh main.Ab Military rule ka samay aa gaya hai Bharat main, Jo in politicians ko Politics se bahar kar de.
Abhinav Ji,
A very realistic description of the current social psychology of masses and the helplessness. The main reason is Corruption which is rooted in the greed of people sitting in the position of power. A greedy person will be always a coward and hesitate to take bold and brave actions as he always fears of losing his position of power. Only a selfless person can do good to the society and can behave with courage and valor. That's what our selfless soldiers are doing every day in our terrorist infected areas by laying down their lives for our beloved motherland. We should not and cannot expect any thing from our corrupt, coward and greedy politicians. They are of 'Kauravas' of our days and the Judiciary is the blind 'Dhritarashtra' and the masses is 'Draupadi' and there is no Krishna or Pandavs and thats the irony.
We need a more Veer Rasa poetry from you which could boil the blood of the youth of today who can throw out these corrupt and coward politicians out of the politics by putting them selves in the service of our motherland selflessly.
Jai Hind
Satyashish
बहुत सुंदर अभीव्यक्ती अभीनव भाई
...और....इधर "हिन्दुस्तान" के पिछले हफ़्ते के ब्लौग-वार्ता में आपकी इस रचना के बारे में भी छपा है
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