न तो लंका जली,
न तो रावण मरा,
न ही अंगद नें पाँव,
धरा पर धरा,
न भलाई डटी,
न बुराई हटी,
पा गई दिव्यता,
एक नई तलहटी,
क्या पता,
कब कहाँ,
क्या फटे,
क्या कटे,
कर के सबको,
बहुत भयभीत गया,
लेओ.....,
एक और दशहरा बीत गया.
महा लिख्खाड़
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लेओ, एक और दशहरा बीत गया.
Oct 9, 2008प्रेषक: अभिनव @ 10/09/2008
Labels: कविताएं
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5 प्रतिक्रियाएं:
फिर भी:
विजय दशमी पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाऍ.
:)
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनांयें
Halaton par achha vyangya. aap kavita lekhan aur blog ke liye samay nikal rahe hain, achhi baat hai.Blog kya hota hai yah aapne hi bataya.nahin to ham isse dur hi rah jate.is liye is baat ka bhi sukriya kar dun.videsh men khoob man lag gaya hai, aisa lagta hai.
आज शाम मनेगा जी यहां पर। और आपको शुभकामनायें।
िवजयदशमी पवॆ की शुभकामनाएं ।
अच्छा िलखा है आपने
दशहरा पर मैने अपने ब्लाग पर एक िचंतनपरक आलेख िलखा है । उसके बारे में आपकी राय मेरे िलए महत्वपूणॆ होगी ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
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