कैलीफोर्निया में कवि सम्मेलन - कुछ तस्वीरें तथा कुछ बातचीत

Jul 26, 2007

पिछले सप्ताहांत (२१ जुलाई २००७) हमें कैलीफोर्निया में आयोजित एक कवि सम्मेलन में जाने का अवसर मिला। भारतीय मूल के कुछ लोग मिल जुल कर कार्यक्रम कर रहे थे तथा कवि सम्मेलन द्वारा सात्विक आनंद की प्रप्ति करना चाहते थे। शनीवार की सुबह सुबह मैं और मेरी पत्नी सामान बांध कर सिएटल से सेंट फ्रांसिसको की ओर जाने वाला विमान पकड़ने चल पड़े। सुबह सुबह निकलने के कारण वह समय याद आ गया जब लखनऊ से दिल्ली जाने के लिए गोमती एक्सप्रेस पकड़ने भागते थे। सिएटल में गर्मियों के दिनों में सूर्य देव सुबह चार बजे करीब ही अपना जल्वा दिखाना प्रारंभ कर देते हैं तथा रात के नौ, सवा नौ बजे तक अपने होने का एहसास कराते रहते हैं। जब हम सोकर उठे तो सुबह हो चुकी थी और जब हम साढ़े छह बजे की फ्लाइट में बैठे तो धूप भी खिल आई थी।

कवि सम्मेलन अपने नियत समय से लगभग घंटा भर देरी से प्रारंभ हुआ। नगरी के प्रसिद्ध विद्वान श्याम नारायण शुक्ल जी नें श्रोताओं को हमारा परिचय दिया, उन्हीं के भाई श्री देवेन्द्र नारायण शुक्ल जो कि एक अच्छे कवि तथा कविता के मर्मज्ञ हैं, इस कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे। वहाँ पहली बार अर्चना पाँडा जी को सुनने का अवसर मिला। अपने भावों को शब्दों में ढाल कर बड़े सुंदर तरीके से अर्चनाजी नें प्रस्तुत किया। उनकी कविताएँ सुनकर बड़ा आनंद आया तथा यह देखकर भी अच्छा लगा की अपने आस पास होने वाली घटनाओं और गतिविधियों को उन्होंने अपनी कविताओं का विषय बनाया है। अर्चनाजी का विडियो आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं।

देवेन्द्र नारायण शुक्ल जी नें भी बढ़िया हास्य कविताएँ सुनाईं। सिएटल से चलते समय राहुल उपाध्यायजी नें हमसे कहा था कि देवेन्द्र जी से गेट्स वाली कविता अवश्य सुनना अतः हमने वह भी सुनी। कविता का मूल भाव था कि, गेट्स नाम होने के बावजूद बिल नें विन्डोज़ क्यों बनाई। नीलू गुप्ता जी नें भी बढ़िया रचनाएँ सुनाईं। उनकी कविताएँ हमनें विश्व हिंदी सम्मेलन में भी सुनी थीं तथा आनंदित हुए थे। यहाँ पुनः उनको सुनने का अवसर प्राप्त कर अच्छा लगा। उन्होंने अपनी कविताओं की पुस्तक, "जीवन फूलों की डाली" भी हमको भेंट करी।

यह हमारा पहला कवि सम्मेलन था जिसमें लोग गोल गोल टेबल्स के चारों ओर बैठे थे। हमनें टीवी पर बिज़नेस अवार्डस आदि में ऐसी कुर्सी मेज व्यवस्था देखी थी। पहले हमें लग रहा था कि कहीं किसी को रुचि न आई तो लोग कविताएँ सुनना छोड़ आपस में बतियाने लगेंगे। पर ऐसा नहीं हुआ और सबने बड़े मनोयोग से काव्य पाठ को सुना। कवि सम्मेलन के उपरांत स्टैंड अप कमेडी का कार्यक्रम हुआ जिसमें संस्था के एक कलाकार नें खूब चुटकुले सुनाए। यह तो अच्छा था कि कवियों में से किसी नें चुटकुलेबाज़ी नहीं करी अन्यथा कंपटीशन वाली बात हो जाती।

एक और आईटम पेश हुआ, कार्यक्रम के प्रारंभ में एक सज्जन नें हिंदी के लिए "डाईंग लैंग्वैज" संबोधन का प्रयोग किया था अतः उनसे मैंने कहा कि यदि किसी भाषा का हमारा ज्ञान कम हो रहा हो तो यह समझना चाहिए कि हमारी योग्यता में कमी आ रही है न कि भाषा की सांसे कम हो रही हैं। एक भाईसाहब बाद में मिले तो बोले कि वे अमेरिका के परिपेक्ष में बात कर रहे थे तो हमनें उन्हें समझाया कि आज से पचास वर्ष पहले क्या कोई अमेरिका में हिंदी कवि सम्मेलन सुनने की, फिल्में देखने की बात सोच सकता था। आज यह सब हो रहा है, अतः घबराएँ नहीं सकारात्मक सोच रखें और मस्त रहें। कुल मिला कर कार्यक्रम बढ़िया रहा तथा सब लोग हंसते हंसते अपने घर गए। कार्यक्रम के कुछ चित्र नीचे प्रेषित कर रहा हूँ।


काव्य पाठ करते हुए अभिनव तथा मंच पर उपस्थित नीलू गुप्ता, अर्चना पांडा एवं देवेन्द्र शुक्ल

कवि सम्मेलन के बाद की तस्वीर











हम पहली बार कैलीफोर्निया गए थे अतः अगले दिन सेंट फ्रांसिसको नगरी घूमने गए। घुमाई फिराई के कुछ चित्र नीचे प्रेषित कर रहा हूँ।


गोल्डेन ग्लोब का एक दृश्य (यह इमारत रोमन वास्तुकला के प्रभावित होकर बनाई गई लगती है।)






हम ज़रा ज़्यादा ही मुटा गए हैं, अब मुट्टम मंत्र की जगह पतलम मंत्र का पारायण करना चाहिए।

ये हैं हमारे मामाजी, मामीजी एवं उनकी पुत्री (फोटे देख कर वे बोले कि यह तो बिल्कुल जीवन बीमा के विज्ञापन की तस्वीर हो गई।)




ये मशीन चाकलेट बना रही है।



ढ़लान पर बनी टेढ़ी मेढ़ी सड़क पर कारों का कारवाँ।

7 प्रतिक्रियाएं:

काकेश said...

अच्छे लगे आपके चित्र और वर्णन भी.

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया विवरण और अच्छे चित्र. खूब तरक्की करते रहें यूँ ही. बधाई.

तस्वीरें और विवरण अच्छे लगे। पतले होने का काम कब से शुरू हो रहा है!

sanjay patel said...

परदेस में हिन्दी का हुआ..जानकर आनंद हुआ.तस्वीरें करामाती हैं...जीवन बीमा के इश्तिहार में वाकई मामाजी वाला चित्र सटीक रहेगा.
शिल्प हमारे भारत में भी बुरे नहीं ...सिर्फ़ रखरखाव में मार खा जाते हैं हम.

Archana Panda said...

"hey Diptimaan Abhinav jyoti,
sahityon main khilte rehna,
hai bas itni archana,
hey kavi shrestha, milte rehna..."

abhi tak hamen is main hindi font use karna nahi aaya hai. Jab seekh jayenge, to next comment hindi lipi main likhenge.

Dipti aur Abhinav ko pyar sahit,
Archana

शुक्रिया इस विवरण और चित्रों के लिए!
अच्छे लगे!!

कवि सम्मेलन का पूरा सचित्र वर्णन पाकर आनंदित हुआ परंतु वीडिओ ना पाकर निराश भी.
अर्चना पान्डा जी का वीडिओ तो यु-ट्यूब पर काफी समय से है. मेरे चिट्ठे पर कवि-सम्मेलन /मुशाइरा के वीडिओ लिंक हैं जो सीधे यू-ट्यूब से जुडते है, उस लिंक् पर मैने अर्चना जी का वीडिओ देखा था.

बस लगा कि अपनी भी कैलीफोर्निया की यात्रा हो ही गयी.