रुपए ना मान ना सम्मान चाहिए,
हमको खु़दा ना भगवान चाहिए,
हल्दी ना तेल ना ही नून चाहिए,
हमको आतंकियों का खून चाहिए,
बार बार वार पर वार हुए हैं,
भयावाह तीज त्योहार हुए हैं,
मासूमों की चीखों से पटे हैं रास्ते,
आरती अजान हाहाकार हुए हैं,
टूटते समाज को बचाने के लिए,
दुष्टों को सबक सिखाने के लिए,
भाषणों का नहीं मजमून चाहिए,
हमको आतंकियों का खून चाहिए,
मुँह ढँक चुपचाप सोते रहे हैं,
झूठमूठ के विवाद ढोते रहे हैं,
आज भी यदि ना प्रतिकार करेंगे,
कल आप इसका शिकार बनेंगे,
शान्ति का व्रत तोड़ने के वास्ते,
भेड़ियों पे सिंह छोड़ने के वास्ते,
नई देशभक्ति का जुनून चाहिए,
हमको आतंकियों का खून चाहिए।
महा लिख्खाड़
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हमको आतंकियों का खून चाहिए
Jul 13, 2006
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6 प्रतिक्रियाएं:
बहुत ही जोश वाली कविता है निनाद जी (अगर ये आपका नाम है तो, पहली बार आया हूँ)। अच्छी कविता लिखतें हैं आप
अभिनव बहुत खूब, बड़ी अच्छी लिखी है जोश से भरपूर
बहुत बढ़िया कविता है।
बन्धूवर कहते हैं
पहले शांतिवार्ता, फिर तलवार,
पर यह फिर कब आयेगा महेरबान.
यूं न आप भड़काईये,
बस शांति के कबुतर उड़ाईये.
अच्छी कविता लिखी हैं. जी करता हैं गृहमंत्रालय को भेज दूं.
कविता बहुत अच्छी लगी अभिनव जी! प्रत्येक देशभक्त में ऐसी ही जागृति आनी चाहिये!!
ओढ़ आदर्श, ले प्रण, जिन्हे जी रहे
खोखले हो चुके कितना दोहराओगे
फन कुचलने को विषधर का, है ये घड़ी
और कब तक स्वयं को यूँ डँसवाओगे
दूध तुमने पिलाया, चलो ठीक है
आस्तीनों में पालो ये अच्छा नहीं
जनमेजय हो, चुनौती को स्वीकार लो
जो लड़ा कर सका अपनी रक्षा वही
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