सास बहू और टेबिल टेनिस

Sep 20, 2012


मुझे अपनी मां में,
और अपनी पत्नी की सास में,
अंतर दिखाई देने लगा है,

माँ, 
ईश्वर का रूप है,
सर्दियों की गुनगुनी धूप है,
सास,
कुछ अनकहा आभास है,
एक असहज एहसास है,
खरी खरी बात, कुछ यहाँ वहां नहीं,
माँ में सास नहीं है, सास में माँ नहीं.

मुझे एक बेटी में,
और अपनी माँ की बहू में भी,
अंतर दिखाई देने लगा है,

बेटी,
खुशबू से घर महकाती है,
सितारों सी जगमगाती है,
बहू,
मन की बात कहते डरती है,
पीछे खुटुर - पुटुर करती है,
सीधी सीधी बात, कोई लाग लपेटी नहीं,
बेटी में बहू नहीं है, बहू में बेटी नहीं.

ऐसे में अपना होता है कुछ ऐसा ही हाल,
जैसे दो चीनियों के मध्य फँसी को कोई पिंग पांग बाल,
इससे पहले कि बाल कि रेड़ पिट जाए,
मैं चाहता हूँ कि ये अंतर मिट जाए,

पर, इसके लिए माँ को सिर्फ माँ रहना होगा,
और बहू को बिटिया बन कर जीवन कि धारा में बहना होगा,
अन्यथा, युगों युगों से चल रहा खेल जारी रहेगा,
तथा, माँ पर सास का, और बेटी पर बहू के प्रकोप तारी रहेगा.

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः !

चाय पिलाई जाए

Sep 19, 2012


आफिस से जब शाम को साहब वापस आए,
पत्नी से बोले ज़रा चाय पिलाई जाए,
चाय पिलाई जाए जरा सी अदरक वाली,
कड़क, मसालेदार, दूधिया, मिर्च भी काली,
पत्नी बोली प्राणनाथ, तुम यह लो माचिस,
मैं भी थकी हुई आई हूँ फ्राम द आफिस.

साहब नें माचिस लई, चूल्हा दिया जलाय,
चढ़ा भगोना बन गयी, पानी जैसी चाय,
पानी जैसी चाय, एक करतब दिखलाया,
चीनी के स्थान पे टाटा नमक मिलाया,
मंद मंद मुस्काते चाय को कप में छाना,
बोले, तुम भी पियो ओ मेरी जाने जाना. 


बिन तेरे सब सून


घर भी सूनामन भी सूना,
आपके बिन जीवन भी सूना,

किचन बेचारा बोर हो रहा,
उसका हर बर्तन भी सूना,

बर्फ बने अम्बर के आंसू,
मंदिर का चंदन भी सूना,

होतीं तो झगड़ा ही करतीं,
गईं तो अपनापन भी सूना।