आत्मसमर्पण गीत - हम हैं भेड़ बकरियों जैसे

Nov 29, 2008















चाहे छुप कर करो धमाके, या गोली बरसा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ,

किसको बुरा कहें हम आख़िर किसको भला कहेंगे,
जितनी भी पीड़ा दोगे तुम सब चुपचाप सहेंगे,
डर जायेंगे दो दिन को बस दो दिन घबरायेंगे,
अपना केवल यही ठिकाना हम तो यहीं रहेंगे,
तुम कश्मीर चाहते हो तो ले लो मेरे भाई,
नाम राम का तुम्हें अवध में देगा नहीं दिखाई,
शरियत का कानून चलाओ पूरी भारत भू पर,
ले लो भरा खजाना अपना लूटो सभी कमाई,
जय जिहाद कर भोले मासूमों का खून बहा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ,

वंदे मातरम् जो बोले वो जीभ काट ली जाए,
भारत को मां कहने वाले को फांसी हो जाए,
बोली में जो संस्कृत के शब्द किसी के आयें,
ज़ब्त कर संपत्ति उसकी तुरत बाँट ली जाए,
जो जनेऊ को पहने वो हर महीने जुर्माना दे,
तिलक लगाने वाला सबसे ज़्यादा हर्जाना दे,
जो भी होटल शाकाहारी भोजन रखना चाहे,
वो हर महीने थाने में जा कर के नजराना दे,
मन भर के फरमान सुनाओ जीवन पर छा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ,

यदि तुम्हें ये लगता हो हम पलट के वार करेंगे,
लड़ने की खातिर तलवारों पर धार करेंगे,
जो बेबात मरे हैं उनके खून का बदला लेंगे,
अपने मन के संयम की अब सीमा पार करेंगे,
मुआफ़ करो हमको भाई तुम ऐसा कुछ मत सोचो,
तुम ही हो इस युग के नायक चाहे जिसे दबोचो,
जब चाहो बम रखो नगरी नगरी आग लगाओ,
असहाय सी गाय सा देश है इसको मारो नोचो,
हिंदू सिख इसाई मुस्लिम दंगे भी भड़का जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ.

'इंडियन लाफ्टर' देखिये

Nov 27, 2008

ज़रा हट कर है, 'इंडियन लाफ्टर' देखिये,
आपसे क्या मतलब, आप बम फेंकिये,
मुंबई को बना दीजिये बमबई,
अरे, ये बगल से किसकी गोली गई,
किसने चलाई, क्यों चलाई, किस पर चलाई,
अमां छोडिये ये लीजिये दूध में एक्स्ट्रा मलाई,
सुनिए, लता क्या सुंदर गाती है,
ये किसके रोने की आवाज़ आती है,
हम लगातार पाँच मैच जीते हैं,
जो अपाहिज हुए हैं उनके दिन कैसे बीते हैं,
लगता है होटल में आग लग गई है,
बहुत सर्दी हो रही है हाथ सेंकिए,
'इंडियन लाफ्टर' देखिये.

अथर्व, तुम्हारा स्वागत है

Nov 24, 2008

अथर्व, तुम्हारा स्वागत है,

आओ आकर जग को अपनी खुशबू से महकाओ तुम,
मानवता के बाग़ में खिलते हुए पुष्प बन जाओ तुम,
चित्र बनाओ बदल पर जीवन की सुन्दरताई के,
रंग भरो कोमलता के, दृढ़ता के औ' सच्चाई के,
सदा प्रतिष्ठा जनित तुम्हारी कीर्ति जगत में व्याप्त रहे,
जो देवों को भी दुर्लभ स्थान वो तुमको प्राप्त रहे,
हंसो और मुस्काओ खिलकर, खुलकर सबका मान करो,
कभी घृणा न करो किसी से प्रेम, पुण्य, तप दान करो,
देखो पलक बिछाए बैठी दुनिया तुमसे बोल रही,
अथर्व तुम्हारा स्वागत है,

न तो मन मन में पीड़ा थी न तन तन में तबाही थी,
ये दुनिया वैसी तो न है जैसी हमनें चाही थी,
अभी बहुत से पोखर ताल शिकारे सूखे बैठे हैं,
अभी बहुत से सूरज चाँद सितारे भूखे बैठे हैं,
अभी बहुत सी नदियों में ज़हरीली नफरत बहती है,
रहती है खामोश मगर ये धरा बहुत कुछ कहती है,
देखो तुम भी देखो कट्टरता की शाखा बढ़ी हुयी,
और तुम्हारे पिता की पीढी हाथ झाड़ कर खड़ी हुयी,
शब्दों की थाली से तुमको तिलक लगाने को आतुर,
अथर्व तुम्हारा स्वागत है,

रहो कहीं भी किसी देश में कोई भी भाषा बोलो तुम,
किसी धर्म को चुनो किसी जीवन साथी के हो लो तुम,
कोई भी व्यवसाय तुम्हारा हो कोई भी भोजन हो,
किंतु हृदय में पावनता हो शुभ संकल्प प्रयोजन हो,
देश तुम्हारा भेदभाव न करे न्याय का दाता हो,
भाषा जिसमें झूम झूम कर जीवन गीत सुनाता हो,
धर्म हो ऐसा जो सब धर्मों का समुचित सम्मान करे,
जीवन साथी जीवन भर जीवन में सुख संचार करे,
व्यवसाय हो सबके हित में भोजन सरल सरस सादा,
अथर्व तुम्हारा स्वागत है.

ये कैसी अरुणिम सी लालिमा है

Nov 18, 2008














ये कैसी अरुणिम सी लालिमा है,
ये रक्त किसका बहा हुआ है,
नगर भी चुप है,
डगर भी चुप है,
ये सत्य है,
या,
ये कल्पना है,

न जाने कैसा है प्रश्न जीवन,
सब उत्तरों में भटक रहे हैं,
ये दृश्य कैसे हैं आज बिखरे,
सभी नयन में खटक रहे हैं,

न कोई पुस्तक न कोई वाणी,
ह्रदय की पीड़ा मिटा रही है,
न कोई जल न कोई कहानी,
गरल क्षुधा को बुझा रही है,

समस्त भूखंड खंड खंडित,
उपहास धरती का कर रहे हैं,
ये विष को अमृत बताने वाले,
क्यों आज दर्पण से डर रहे हैं,

वो जगमगाते हुए भवन को,
ये झोंपड़ी क्यों न दिख रही है,
ये पांच परपंच त्याग कर के,
कलम न जाने क्या लिख रही है,

ये कैसी अरुणिम सी लालिमा है,
ये रक्त किसका बहा हुआ है.

ये तोड़ेंगे भारत को - पाकिस्तान के स्वप्न

Nov 17, 2008

ज़ाइद हमीद नमक ये पाकिस्तानी सज्जन खूब बक बक कर रहे हैं. भारत कैसे टूटेगा और हमारे देश की क्या बड़ी समस्यायें हैं ये हमसे अधिक इनको पता हैं. आप भी सुनिए और मज़ा लीजिये.



हिमाद्रि तुंग शृंग से
प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्ज्वाला
स्वतंत्रता पुकारती
'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ
विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के-
रुको न शूर साहसी !
अराति सैन्य सिंधु में ,सुबाड़वाग्नि से चलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो !

जयशंकर प्रसाद