कमाल हो गया - एक तिब्बतीय संवेदना

Apr 9, 2008


'ज़रा देखो तो,
ये तिब्बत वाले कितना उछल रहे हैं,
ज़रा ऊँगली पकडाओ तो पहुँचा पकड़ने के लिए जम्प करने लगते हैं.'

'क्यों भाई! तुम्हें पता भी है की चीन नें क्या किया है,
या बस यूं ही सुबह सुबह मसाला मुंह में दबाया और चालू हो गए.'

'अरे कुछ किया हो चीन नें,
हम तो ये जानते हैं की चीन से पंगा लेने का नहीं,
वैसे भी कौन सा तिब्बत पर हमारा कब्ज़ा होने जा रहा है,
बिना मतलब के बवाल में काहे टांग अटकानी.'

'कैसी बात करते हो,
ग़लत चीज़ तो ग़लत ही होती है चाहे कोई भी करे.'

'हाँ यही तो मैं भी कह रहा हूँ,
जैसे तसलीमा को भगाया है,
लगता है वैसे ही अब दलाई लामा के जाने का नम्बर आ रहा है,
अमाँ ये सब छोडो,
ये बताओ पे कमीशन कब लागू करवा रहे हो,
पीक बहुत बनती है मसाले में,
पुच्च, पुच्च, थू, थू, थू, थू.'

और इस प्रकार हमारी पुण्य पावन भारत भूमि का एक और टुकडा लाल हो गया,
कमाल हो गया.

3 प्रतिक्रियाएं:

और क्या जी; चीन को बुलाओ और नेफा (अरुणांचल) का मैनेजमेण्ट आउटसोर्स करो जी!

अगर तिब्‍बत में मुसलमान होते तब सोचो क्‍या होता भारत की हर पार्टी कैसा शोर मचाती

Abhishek Ojha said...

सही बात है जी, बम्बई को बीजिंग बनाना है यहाँ और आप भी कहाँ तिब्बत के चक्कर में पड़ गए? दलाई लामा का सही में अगला नम्बर है :-)