'ये कविराज न जाने अपने आप को क्या समझता है,
कविता एक भी नही है, बस लाफ्फज़ी कर लो,
ऊट पटांग घिसे पिटे चुटकुले,
*&%^^ *&^&* ^%$%^$%^ &^%&^%'
'ठीक कहते हैं और ये *&^*&$* राधेश्याम भी उसके जाल में फँस गया है,
सुनते हैं की इस होली पर पूरा टूर बना रहे हैं,
बस इनके लोग ही जायेंगे.'
'इनके लोग सब फ्राड हैं,
&^%&^%&(%^,
मेरा तो खून खौल उठता है,
तुमने देखा कैसे साजिश कर के मुझे नीचा दिखाते हुए बुलाया,
बस जो अपनी जी हुज़ूरी करे उसको जमाओ बाकी को उखाड़ दो,
मैं देखता हूँ की अब मेरे कार्यक्रमों में ये कैसे आता है,'
'वैसे एक और बात बताएं, इन लोगों का जाल इधर बाहर भी फ़ैल रहा है,
कम्पूटर पर भी बड़ी मार्केटिंग हो रही है,
चोर कहीं के, ख़ुद से एक कविता तो लिखी नहीं जाती और हरकतें,
मुर्गा, शराब, और भी न जाने क्या क्या,
&^%&^%&(^%^& हवाई जहाज से आते जाते हैं,
हुंह *^&*^&)*^&^%.'
(कविराज का प्रवेश...)
'आइये कविराज आइये,
चरणों में प्रणाम स्वीकारिये,
अभी अभी आप ही की प्रशंसा ही रही थी,'
'वाह भाई ये हुई न बात,
इधर मैं भी राधेश्याम जी से आपकी स्तुति कर के आ रहा हूँ.'
'आज तो आपको सुनकर बहुत बढ़िया लगा, क्या अंदाज़ है आपका,
सुन रहे हैं इधर टूर लग रहा है,
भूल मत जाइयेगा अपने इस भक्त को.'
'अरे कैसी बात करते हैं, आप तो हमारे भाई हैं,
आपको कहाँ भूल कर जायेंगे,
वैसे टूर तो राधेश्याम करवा रहे हैं उनसे भी बात कर लीजियेगा.'
(...कुछ देर तक सन्नाटा, अब कोई बोले भी तो क्या. तभी राधेश्याम जी मंच से संचालन करते हुए कहते हैं,)
'माँ वीणावादिनी के चरणों में प्रणाम करते हुए,
अब हम कवि सम्मेलन के दूसरे सत्र का प्रारम्भ करते हैं,
माँ शारदा के सभी वरद पुत्रों से अनुरोध है की एक बार पुनः,
मंच की शोभा बढ़ाने के लिए यहाँ आ जाएँ.'
और मंच की शोभा बढ़ा दी जाती है.
महा लिख्खाड़
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निंदा के दम पर जिंदा
Apr 14, 2008प्रेषक: अभिनव @ 4/14/2008
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2 प्रतिक्रियाएं:
भैया भूल न जाना हमको, हम भी एक प्रशंसक हैं
तुम्हें विदित है, सिवा हमारे सभी तुम्हारे निन्दक है
हम तो सदा वाह करते हैं और बजाते ताली भी
साथ हमें भी ले जाओ तो हम अच्छे शुभचिन्तक हैं
:-)
Barhiya hai Abhinav bhai...
ye parhkar to mujhe kai kavi sammellan yaad aa gaye ...
ab unke baare mein kya kahen wo to #$%43#$%3 hain ... Symbols ke prayog ka idea mast laga :)
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