मुझे याद है,
जब लातूर में भूकंप आया था,
हम बिहार में रहते थे,
माँ नें उस दिन खाना नही बनाया था,
पिताजी नें एक महीने की तनख्वाह,
राहत कार्यों हेतु प्रदान करी थी,
मैंने ख़ुद दोस्तों के साथ,
दुकान दुकान जा कर इकठ्ठा किए थे पैसे,
मेरे घर में ही कहर टूटा हो जैसे,
और आज मैं मुम्बई के प्लेटफार्म पर,
पिटा हुआ पड़ा हूँ,
किसलिए,
ये मत सोचियेगा की एहसान गिना रहा हूँ,
मैं तो दुखी हूँ उनसे,
जो अपने को शिवाजी का रिश्तेदार बताते हैं,
मेरी संस्कृति पर अधिकार जताते हैं,
मैं पिट गया,
कोई बात नही,
घर पर भी जब कभी,
छोटे भाई से झगड़ता हूँ,
पिताजी पीट ही देते हैं,
दो दिन में वो मार भूल भी जाता हूँ,
धीरे धीरे शरीर के ज़ख्म भर जायेंगे,
ये मार भी भूल जाऊँगा,
लेकिन इस बार तो मैंने किसी से कोई झगडा नही किया,
फिर भी,
आख़िर क्यों?
वैसे लातूर महाराष्ट्र में ही है न.
महा लिख्खाड़
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लातूर महाराष्ट्र में ही है न
Mar 6, 2008
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8 प्रतिक्रियाएं:
अति संवेदनशील..वैसे पहले लातूर था तो महाराष्ट्र में ही..अब हालात देख खुद को अलग करने का मन बना लिया हो, तो कह नहीं सकते. काश, इन शहरों की भी जुबान होती इन शहरियों की ही तरह.
क्या बात है. राज और बाल ठाकरे को यह जरूर पढ़ना चाहिए कुछ तो शर्म आयेगी इन राक्षसों को.
बहुत मार्मिक सामयिक लिखा है अभिनव - बहुत बढ़िया - मनीष
ये तथाकथित मराठी शेरों को जरूर पढ़ना चाहिए।
बहुत बढ़िया । मुझे नहीं लगता लातूर शोलापुर वाले कहेंगे कि हमारे महाराष्ट्र में मत रहो । ये सब बातें खुराफाती मस्तिष्कों की देन हैं ।
घुघूती बासूती
कोई न कोई बहाना चाहिये दंगो को फ़ैलाने का...शिवाजी गये मगर उनके नाम को डूबाने मे कसर नही छोड़ी गई है...क्या वो चाहते थे उनके नाम पर दंगा हो?
कोई जाति कोई पंथ विशेष नहीं
प्रांतवाद का भी कोई परिवेश नहीं
राज ठाकरे को जाकर ये समझाओ
मुंबई भारत का हिस्सा है देश नहीं
अच्छा लिखा है अभिनव भाई ..बस यही मनाता हूँ ये नकारात्मक राजनीति यहीं रुक जाए
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