‘उर्वशी’ में शृंगार, ‘संस्कृति’ में विचार,
'कुरुक्षेत्र' लिख 'हुंकार' को जगा गए| 
‘रश्मिरथी’ से गूँज उठी न्याय की पुकार,
अन्याय के विरुद्ध युद्ध बरपा गए| 
भाषा को संवार, रस छंद अलंकार भर,
कविता की देहरी पे दीपक जला गए| 
मन के अंधेरों को बुहार कर दिनकर,
भारत की आत्मा से परिचय करा गए| 

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