मेरे नगर में आज कल पानी बरसता है बहुत,
सदियों पुराना पेड़ पर प्यासा तरसता है बहुत,
रोने की आवाजें मेरे कानों में फिर आने लगीं,
नेपाल नंदीग्राम में कोई तो हँसता है बहुत,
बहने दे थोडी साँस भी महंगाई के ओ देवता,
तू तो गले में डाल कर फंदे को कसता है बहुत,
नफरत के सिर पर बैठने का राजशाही पैंतरा,
कर तो रहा है काम पर ये नाग डसता है बहुत.
महा लिख्खाड़
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मेरे नगर में आज कल पानी बरसता है बहुत
May 8, 2008
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10 प्रतिक्रियाएं:
बहुत उम्दा रचना बन पड़ी है. बधाई, अभिनव.
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा भी शुरु करवायें तो मुझ पर और अनेकों पर आपका अहसान कहलायेगा.
इन्तजार करता हूँ कि कौन सा शुरु करवाया. उसे एग्रीगेटर पर लाना मेरी जिम्मेदारी मान लें यदि वह सामाजिक एवं एग्रीगेटर के मापदण्ड पर खरा उतरता है.
यह वाली टिप्पणी भी एक अभियान है. इस टिप्पणी को आगे बढ़ा कर इस अभियान में शामिल हों. शुभकामनाऐं.
बहुत सुंदर बधाई
रोने की आवाजें मेरे कानों में फिर आने लगीं,
नेपाल नंदीग्राम में कोई तो हँसता है बहुत,
वाह!
आपकी कविता बहुत पसंद आयी..
बेहद खूबसूरत ख्यालों के साथ..
रोने की आवाजें मेरे कानों में फिर आने लगीं,
नेपाल नंदीग्राम में कोई तो हँसता है बहुत,
बहुत जुदा ओर खरी खरी........
कई खाइयों को नाप गई आपकी ये पंक्तियाँ, बहुत सुंदर !
bahut hi satik baat behad khubsurat tarike se bayan ki hai gazal mein,bahut badhai.
अभिनव भाई,
उगते सूरज की लालिमा सा..
यह अंदाज भी आपका हमे भा रहा है
बधाई
bahut sundar panktiyan hain...
बहुत खूब !
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