लोरी - मेरे प्यारे सो जा रे

Jan 27, 2009

सो जा रे, सो जा रे,
मेरे प्यारे सो जा रे,
राज दुलारे सो जा रे,
आंखों के तारे सो जा रे,
सो जा रे, सो जा रे,
मेरे प्यारे सो जा रे,
 
देख तुझे परियों की रानी सैर कराने आई है,
झिलमिल झिलमिल तारों वाले खूब खिलौने लाई है,
बिस्तर की गोदी में जाकर,
अब निंदिया के हो जा रे,
सो जा रे, सो जा रे,
मेरे प्यारे सो जा रे,
 
चंदा मामा बुला रहे हैं आ जाओ मेरे आँगन,
मंद पवन भी बजा रही है मधुर बांसुरी पर सरगम,
बांह थाम कर सपनों की,
सुंदर गीतों में खो जा रे,
सो जा रे, सो जा रे,
मेरे प्यारे सो जा रे....

झूठ

Jan 10, 2009

झूठ,
जब भी बोलता हूँ,
थोड़ा सा गिर जाता हूँ,
अपनी ही नज़रों में,
इस गिरेपन के एहसास को लिए उठता हूँ,
और फिर,
एक और झूठ,
मेरा दमन पकड़ कर मुझे नीचे खींच लेता है,
सच बोलना चाहता हूँ,
पर घबरा जाता हूँ,
मन में अजीब सा भय,
कुछ किचकिचा सा डर,
जाता है ठहर,
अपने दोस्तों से,
घरवालों से,
सहकर्मियों से,
सबसे,
सीधा सपाट सच कहना,
मन को निर्मल कर के रहना,
इतना कठिन क्यों है,
कितना नीचे पहुँच गया हूँ मैं,
गिरते गिरते,
कैसे कह दूँ की जो कुछ लिख रहा हूँ,
या जो कुछ पढ़ रहा हूँ,
सच है,
या फिर,
झूठ.
 
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Abhinav Shukla
206-694-3353
P Please consider the environment.

तब लगता है ठगा गया हूँ मैं जीवन के लेन देन में

Jan 3, 2009

तब लगता है ठगा गया हूँ मैं जीवन के लेन देन में,

जब अयोग्य जुगनू सूरज के सिंहासन पर दिखता है,
जब खोटा पत्थर का टुकड़ा कनक कणी सा बिकता है,
जब शब्दों का मोल आँकने वाला मापक बहरा है,
जब असत्य परपंच अनर्गल संभाषण ही टिकता है,
मिलता है सम्मान उसी संभाषण को श्लोकों सा,
तब लगता है ठगा गया हूँ मैं जीवन के लेन देन में,

 

मैंने पहचाना फूलों को गंधों के व्याकरणों से,
और बाग को पहचाना है माली के आचरणों से,
बगिया की शोभा है रंग बिरंगो फूलों की क्यारी,
एक रंग के फूलों को जब अलग निकाला जाता है,
सिर्फ उन्हें जब राजकुमारों जैसे पाला जाता है,
तब लगता है ठगा गया हूँ मैं जीवन के लेन देन में,

 

मेरे नियम ग़लत थे जो मैं मानवता का हामी था,
सत्य बोलने को प्रस्तुत था भोलापन अनुगामी था,
अपने साथी के सिर पर मैं पाँव नहीं धर सकता था,
लाभ हानि की खातिर झूठी बात नहीं कर सकता था,
आज खेल में जब शकुनि के पासे रंग दिखाते हैं,
तब लगता है ठगा गया हूँ मैं जीवन के लेन देन में,

 

जब पुस्तक की शोभा भर होती हों समता की बातें,
झूम नशे में जब मेहनत का मोल लगाती हों रातें,
आदर्शों के मूल धंसे हों येन केन और प्रकारेन में,
तब लगता है ठगा गया हूँ मैं जीवन के लेन देन में.


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Abhinav Shukla
206-694-3353
P Please consider the environment.