अलार्म बज बज कर,
सुबह को बुलाने का प्रयत्न कर रहा है,
बाहर बर्फ बरस रही है,
दो मार्ग हैं,
या तो मुँह ढक कर सो जाएँ,
या फिर उठें,
गूँजें और 'निनाद' हो जाएँ।
रेडियो सलाम नमस्ते पर प्रत्येक रविवार को कवितांजली नामक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। आप इसे आनलाईन भी सुन सकते हैं। इस सप्ताह प्रसारित हुए कार्यक्रम के एक अंश को आप यहाँ सुन सकते हैं।
कार्यक्रमः कवितांजलि समयः प्रत्येक रविवार शाम ९ बजे (डालस टाईम) - (भारत के समयानुसार सोमवार सुबह साढ़े सात बजे) मुख्य प्रस्तुतकर्ताः आदित्य प्रकाश सिंह आयोजकः डा नन्दलाल सिंह (अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, डालस) इस अंश का संचालनः अभिनव शुक्ल
नोटः आपको यदि लगता है कि आपकी कविता को भी इसमें शामिल किया जा सकता है तो कृपया अपनी कविता किसी भी आडियो/वायस फारमैट में shukla_abhinav at yahoo.com पर भेज दीजिए। यदि आपको ऐसा लगता है कि आपके पास कोई ऐसी रिकार्डिंग है जिसे इस कार्यक्रम में शामिल किया जा सकता है तो कृपया उसे भी आप इसी ईमेल पर भेज सकते हैं।
राम नाम लिख कर पाहन भी तैर रहे, सुन हुआ असुरों के मन में भरम है, रावण नें निज नाम लिखा शिलाखण्ड पर, सागर में तैर गया भ्रम हुआ कम है, यह देख चकित हो पूछा मंदोदरी नें, "कैसी है ये माया भला कौन सा नियम है," दशानन बोला "मैंने छोड़ते हुए ये कहा, तैर जा ओ शिला तुझे राम की कसम है।"
नोटः १ - यह दन्त कथा हमें वीर रस के सुप्रसिद्ध कवि श्री गजेन्द्र सोलंकी नें सुनाई थी। हमने मात्र उस कथा को छन्दबद्ध करने का प्रयास किया है। २ - श्री राम का यह सुन्दर चित्र बाबा सत्यनारायण मौर्य नें बनाया है। ३ - श्री उदय प्रताप सिंह जी के राम छन्द यहाँ क्लिक कर के पढ़ें-सुनें। ४ - राम नाम में बड़ा दम है, चाहे पत्थर पर लिखो चाहे मन पर, सब तर जाता है।
रेडियो सलाम नमस्ते पर प्रत्येक रविवार को कवितांजली नामक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। आप इसे आनलाईन भी सुन सकते हैं। इस सप्ताह प्रसारित हुए कार्यक्रम के एक अंश को आप यहाँ सुन सकते हैं।
कार्यक्रमः कवितांजलि समयः प्रत्येक रविवार शाम ९ बजे (डालस टाईम) - (भारत के समयानुसार सोमवार सुबह साढ़े सात बजे) मुख्य प्रस्तुतकर्ताः आदित्य प्रकाश सिंह आयोजकः डा नन्दलाल सिंह (अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, डालस) इस अंश का संचालनः अभिनव शुक्ल इस अंश के कविः **** डा वागीश दिनकर (पिलखुआ, भारत) और **** अनूप भार्गव (न्यू जर्सी, यू एस ए)
नोटः आपको यदि लगता है कि आपकी कविता को भी इसमें शामिल किया जा सकता है तो कृपया अपनी कविता किसी भी आडियो/वायस फारमैट में shukla_abhinav at yahoo.com पर भेज दीजिए। यदि आपको ऐसा लगता है कि आपके पास कोई ऐसी रिकार्डिंग है जिसे इस कार्यक्रम में शामिल किया जा सकता है तो कृपया उसे भी आप इसी ईमेल पर भेज सकते हैं।
इधर यूट्यूब पर एक नज़्म सुनने को मिली। रहबर जौनपुरी साहब की 'आवाज़-ए-जंज़ीर'। मैं कुछ पंक्तियाँ समझ नहीं पाया, कुछ का ओवरहेड ट्राँसमिशन हो गया, पर जो कुछ भी लिख पाया यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ। अभी इसमें कई त्रुटियाँ होंगी जो की मेरी अल्पज्ञता के कारण है अतः मुझे क्षमा करें। मुल्क के सभी मुसलमानों की वफादारी पर प्रश्नचिन्ह लगाने वालों से सामने यह नज़्म कई सवाल लेकर आती हुई दिखी। वीडियो भी अंत में पेस्ट कर रहा हूँ, यदि आपकी नेट स्पीड इजाज़त दे तो देखें-सुनें, अन्यथा पढ़ें।
'आवाज़-ए-जंज़ीर'
हम हैं हिन्दी हमें इस बात से इंकार नहीं, हम वतन-दोस्त हैं गै़रों के तरफ़दार नहीं, हम हैं मंज़िल का निशाँ राह की दीवार नहीं, हम वफादार हैं इस देश के ग़द्दार नहीं, हम कोई फित्ना गरो गासिबो अगियार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
तुर्कियो शामो मराकश नहीं अपना मसकन, सरज़मीं हिंद की सदियों से हमारा है वतन, अपने अफसाने का उन्वाँ है यही गंगो जमन, अब किसी और से कुछ हमको सरोकार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
हमने कब हिंद के ख्वाबों की तिजारत की है, हमने कब मुल्क के ख्वाबों से बगावत की है, हमने कब साज़िशी लोगों की हिमायत की है, हमने हर हाल में दस्तूर की इज़्ज़त की है, हम ज़माने की निगाहों में ख़तावार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
हिंद के सर की लगाई नहीं हमने बोली, बेच कर राज़ नहीं हमनें भरी है झोली, हमने खेली नहीं इंदिरा के लहू से होली, हमने बापू पे चलाई नहीं हर्गिज़ गोली, हम जफाकश है जफाकेशो जफाकार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
हमने इस देश को ज़िन्दा फन-ए-तामीर दिया, हमने ही ताजमहल जल्वा-ए-कश्मीर दिया, अकबरी जर्फ दिया हमने जहाँगीर दिया, हम किसी दाम-ए-तास्सुब में गिरफ्तार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
हमसे ताबिंदा हुआ जज़्बए ईमान यहाँ, शाह-ए-अजमेर की बाकी है अभी शान यहाँ, हैं अमर जायसी औ' रहिमन-ओ-रसख़ान यहाँ, अज़्मत-ए-हिंद पे रज़िया हुई कुर्बान यहाँ, सर कटा देना हमारे लिए दुशवार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
की है भारत के हरीफों से लड़ाई हमनें, की है ज़ुल्मात में भी राहनुमाई हमनें, तख़्तए दार पे कीनग़्मासराई हमने, की है शाही पे भी तौकीरे गदाई हमने, साहिबे अम्न हैं हम साहिबे पैकार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
सफ़ए हिन्द पे है टीपू-ए-जाँबाज़ का नाम, था जो आज़ादी की तहरीक का सालारो ईमाम, जिसने बरपा किया दुशमन की रगों में कोहराम, जिसने इस देश की धरती को लिया हज्वे तमाम, इससे बढ़कर तो कोई जज़्बए ईसार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
तख़्त-ए-दिल्ली का वो मज़लूम शहंशाह ज़फर, क़ौमे-अफरंग पे जो बनके गिरा बर्को शरर, जिसने इस देश पे कुर्बान किए अपने पिसर, हिन्द की ख़ाक मयस्सर न हुई जिसको मगर, उसकी खिदमात का अब कोई परस्तार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
गौस खाँ बन के दिखाई यहाँ ज़ुर्रत किसने, जंग में फूँक दी तोपों से क़यामत किसने, रानी झाँसी पे रखा दस्त-ए-हिफाज़त किसने, जान पर खेल के फौजों की कयादत किसने, हम किसी तौर भी रुसवा सरे बाज़ार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
अपनी सरहद के निगेहबान को क्यों भूल गए, जंग-ए-कश्मीर की उस जान को क्यों भूल गए, एक आहननुमा इंसान को क्यों भूल गए, यानी ब्रिगेडियर उस्मान को क्यों भूल गए, उसका कुछ ज़िक्र नहीं उसका कुछ इज़हार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
हमपे जब एक पड़ोसी नें किया हमाला शदीद, क़ामयाबी की बहुत अपनी जिसे थी उम्मीद, पास जिसके थे सभी असलहाए असरे जदीद, दे गया मात का पैगाम उसे मर के हमीद, इस हकीकत से किसी शख्स को इंकार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
खूब वाकिफ हैं सभी शौकतो जौहर से यहाँ, थे जो तहरीके खिलाफत के कभी रूहे रवाँ, जिनका हर गाम था दुशमन के लिए संगे गराँ, जिनकी तकरीरों से दाकस्रे विलायत लरजाँ, आज तारीख में वैसा कोई किरदार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
हमनें अहमद की रिफाकत का सिला कब माँगा, हमने ज़ाकिर की मोहब्बत का सिला कब माँगा, हमने आज़ाद की जुर्अत का सिला कब माँगा, हमने किदवई की खिदमत का सिला कब माँगा, हम किसी जुर्अत ओ शोहरत के तलबग़ार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
हमने बाज़ीचए आलम को किया ज़ेरो ज़बर, हमने मुश्ताक औ पटौदी से दिए अहले हुनर, किसकी मीरास हैं किरमानी सलीमो अज़हर, क्या नहीं शाने वतन शाही जो ईनामो ज़फर, बाइसे फक्र हैं हम बाईसे आज़ार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
हमने साईंस का शोबा किया आबाद यहाँ, हमने मिज़इलो राकेट किए ईज़ाद यहाँ, फौज को फिक्र से हमने किया आज़ाद यहाँ, है कलाम ऐसा कोई ज़हने खु़दादाद यहाँ, अग्नि औ पृथ्वी जैसा कोई शहकार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
परदए सिमी की तौकीर बना किसका ज़लाल, किसने मौसीकी औ नग्मा को दिया सोज़े बिलाल, है कोई यूसुफो नौशाद की साहिर की मिसाल, हमसे बढ़कर कोई फनकारों में फनकार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
हमने हैं देखे हैं बदलते हुए हालात यहाँ, हमने देखे हैं सिसकते हुए जज़्बात यहाँ, हमने देखे हैं कयामत के फसादात यहाँ हमने जलते हुए देखे हैं मकानात यहाँ, जि़न्दगी कौन से दिन हमपे गला बार नहीं, फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।
एक बार मेरे छोटा भाई आनंद नें, अपने मस्तक के पटल पर कुछ तौला, फिर हमसे आकर बोला, इंदिरा दादी, प्रियंका दीदी, राजीव अंकल या सोनिया ताई, दो अक्टूबर को, किसका जन्मदिन होता है भाई,
हमने उससे कहा कि, गाँधी तो नेहरू परिवार के ताने बाने में, कहीं खो गया है, और महात्मा, राजघाट के नीचे बनी, किसी कंदरा में जाकर सो गया है,
तुमने जितने भी नाम गिनाए, असलियत में, उन सभी का जन्मदिन, दो अक्टूबर को होता है, और मोहनदास आज भी, किसी प्लेटफार्म पर पड़ा, अपनी आँखें भिगोता है।
एक सुलझी हुई पहेलीः बोलो जी किस फिल्म नें तगड़ी करी कमाई, गाँधी सपोर्टिंग एक्टर, हीरो मुन्ना भाई।
Abhinav Shukla is recognized as a talented Hindi poet who transforms our hectic lifestyles to humor and happiness with his simple words and brilliance of presentation. Abhinav’s thoughtful poems on the latest national and international issues have attracted the attention of critics and media in the past. He was the co-editor of famous literary magazine “Hindi Chetna” for about 10 years. He has appeared on several television and radio shows in India & abroad and has participated in poetic tours across multiple nations. He has been felicitated for his poetry by more than 100 reputed organizations across US, Canada and India. He has spent a fair part of his life in Lucknow, attributing his poetic talents to this city. He earned his Bachelor's degree in Technology from Rohilkhand University, Bareilly. He did his Masters from BITS, Pilani. He is working as a Director of Engineering in an education system based firm in Folsom CA.