एक आत्मसमर्पण गीत

Apr 24, 2025

 





















चाहे छुप कर करो धमाके, या गोली बरसा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ।

किसको बुरा कहें हम आख़िर किसको भला कहेंगे,
जितनी भी पीड़ा दोगे तुम सब चुपचाप सहेंगे,
डर जायेंगे दो दिन को बस दो दिन घबरायेंगे,
अपना केवल यही ठिकाना हम तो यहीं रहेंगे,
तुम कश्मीर चाहते हो तो ले लो मेरे भाई,
नाम राम का तुम्हें अवध में देगा नहीं दिखाई,
शरियत का कानून चलाओ पूरी भारत भू पर,
ले लो भरा खजाना अपना लूटो सभी कमाई,
जय जिहाद कर भोले मासूमों का खून बहा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ।

वंदे मातरम् जो बोले वो जीभ काट ली जाए,
भारत को मां कहने वाले को फांसी हो जाए,
बोली में जो संस्कृत के शब्द किसी के आयें,
ज़ब्त कर संपत्ति उसकी तुरत बाँट ली जाए,
जो जनेऊ को पहने वो हर महीने जुर्माना दे,
तिलक लगाने वाला सबसे ज़्यादा हर्जाना दे,
जो भी होटल शाकाहारी भोजन रखना चाहे,
वो हर महीने थाने में जा कर के नजराना दे,
मन भर के फरमान सुनाओ जीवन पर छा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ।

यदि तुम्हें ये लगता हो हम पलट के वार करेंगे,
लड़ने की खातिर तलवारों पर धार करेंगे,
जो बेबात मरे हैं उनके खून का बदला लेंगे,
अपने मन के संयम की अब सीमा पार करेंगे,
मुआफ़ करो हमको भाई तुम ऐसा कुछ मत सोचो,
तुम ही हो इस युग के नायक चाहे जिसे दबोचो,
जब चाहो बम रखो नगरी नगरी आग लगाओ,
असहाय सी गाय सा देश है इसको मारो नोचो,
हिंदू सिख इसाई मुस्लिम दंगे भी भड़का जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ।

हमको फुर्सत नहीं अभी है आपस में लड़ने से,
कर्नाटक, पंजाब, मराठा, बंगाली करने से,
तुम गज़वा ए हिंद करो, फिर पाकिस्तान बनाओ,
औरंगज़ेबी शासन का परचम फिर से लहराओ,
जात पात में बँटे हुए हम भारत के वासी हैं,
एक बार मर गए तो फिर जन्मेंगे अविनाशी हैं,
हाथ पे रख कर हाथ राह तकेंगे अवतारों की,
वो आएँगे, निपटेंगे, सुध लेंगे बेचारों की, 
तब तक अपनी नफरत को तुम हम पर बरपा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ।