सिन्दूरी सी सुबह

May 20, 2025

 


हनुमान जी की पूँछ जो जलाई रावण ने,

लंका नगरी हेतु महाविपात हो गई।

आधी रात में ही सिन्दूरी सी सुबह हुई,

सुबह जो हुई दुष्टों की रात हो गई।

तुर्क, चीन, पाक — सब पुतले दहन हुए,

धूल धसरित सारी चौधरात हो गई।

"जय हिंद" की ध्वनि से गूंजने लगा गगन,

भारती की आरती की शुरुआत हो गई।


जय हिन्द की सेना! जय हिन्द!

महाराजा अग्रसेन आपको प्रणाम है।

May 14, 2025



 सूर्यवंश का धवल तेज बिखराने वाले,

महाराज वल्लभ के प्रताप को प्रणाम है।

वीरभूमि अग्रोहा जी को है नमन नित,

महालक्ष्मी के दिव्य जाप को प्रणाम है।

‘एक टका, एक ईंट’ धन्य धन्य रही रीत,

व्यक्ति से समाज के मिलाप को प्रणाम है|  

शांति, तप, त्याग, तेज, ज्ञान के परम धाम,

महाराजा अग्रसेन आपको प्रणाम है।

आपरेशन सिन्दूर - चार दिन चार छंद

May 11, 2025





मज़हब पूछ कर आग बरसाने वालों,

शौर्य देख के घमंड चूर चूर हो गया| 

चीन-अमरीका-तुर्क कोई न किसी का सगा,

आशा है हर एक भ्रम दूर दूर हो गया| 

सोफिया की व्योमिका की, बात सुनें बिटिया की,

पाप का घड़ा हुज़ूर, भरपूर हो गया| 

प्रीत वाली रीत संग, भरा था जो लाल रंग,

बन के सिन्दूर वही मशहूर हो गया| 


महाराज विक्रम का नाम बतलाता हमें,

न्याय का सदैव अधिपत्य होना चाहिए| 

कपटी कुटिल छली असुरों का विष दल,

इनका दलन अब नित्य होना चाहिए|

खैबर, बलूच, सिंधु की करुण  है पुकार, 

खंड खंड कर कृत कृत्य होना चाहिए| 

सज्जनों को यज्ञ निर्विघ्न पूर्ण करने को,

दुर्जनों का राम नाम सत्य होना चाहिए।


नई तकनीक वाला नए युग का है युद्ध,

नई चाल चल नए रंग भी दिखायेगा| 

पश्चिम जो दे रहा है दुष्ट पाक को उधार,

हथियारों का भी इंतज़ाम करवाएगा| 

गूगल का सीईओ न माईक्रो सॉफ्ट वाला,

अजयपाल ट्रम्प न पटेल काम आएगा| 

खेत की कटाई हेतु स्वयं भिड़ना पड़ेगा,

बाहर से आके कोई हाथ न बंटाएगा| 


घर के पड़ोस में हो ज़हरीला नाग यदि,

फन भी उठाएगा, डसेगा, इतराएगा।

आप भले सत्तरह बार दें खदेड़ उसे,

दुष्ट है, वो बार-बार लौट कर आएगा।

उसको तो जीतना है सिर्फ एक बार, 

साम दाम दंड भेद सब आज़मायेगा| 

धर्म युद्ध है यह, इसे नीति न तोलियेगा,

शास्त्र को भी अंततः शस्त्र ही बचाएगा।


- अभिनव शुक्ल  

एक आत्मसमर्पण गीत

Apr 24, 2025

 





















चाहे छुप कर करो धमाके, या गोली बरसा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ।

किसको बुरा कहें हम आख़िर किसको भला कहेंगे,
जितनी भी पीड़ा दोगे तुम सब चुपचाप सहेंगे,
डर जायेंगे दो दिन को बस दो दिन घबरायेंगे,
अपना केवल यही ठिकाना हम तो यहीं रहेंगे,
तुम कश्मीर चाहते हो तो ले लो मेरे भाई,
नाम राम का तुम्हें अवध में देगा नहीं दिखाई,
शरियत का कानून चलाओ पूरी भारत भू पर,
ले लो भरा खजाना अपना लूटो सभी कमाई,
जय जिहाद कर भोले मासूमों का खून बहा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ।

वंदे मातरम् जो बोले वो जीभ काट ली जाए,
भारत को मां कहने वाले को फांसी हो जाए,
बोली में जो संस्कृत के शब्द किसी के आयें,
ज़ब्त कर संपत्ति उसकी तुरत बाँट ली जाए,
जो जनेऊ को पहने वो हर महीने जुर्माना दे,
तिलक लगाने वाला सबसे ज़्यादा हर्जाना दे,
जो भी होटल शाकाहारी भोजन रखना चाहे,
वो हर महीने थाने में जा कर के नजराना दे,
मन भर के फरमान सुनाओ जीवन पर छा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ।

यदि तुम्हें ये लगता हो हम पलट के वार करेंगे,
लड़ने की खातिर तलवारों पर धार करेंगे,
जो बेबात मरे हैं उनके खून का बदला लेंगे,
अपने मन के संयम की अब सीमा पार करेंगे,
मुआफ़ करो हमको भाई तुम ऐसा कुछ मत सोचो,
तुम ही हो इस युग के नायक चाहे जिसे दबोचो,
जब चाहो बम रखो नगरी नगरी आग लगाओ,
असहाय सी गाय सा देश है इसको मारो नोचो,
हिंदू सिख इसाई मुस्लिम दंगे भी भड़का जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ।

हमको फुर्सत नहीं अभी है आपस में लड़ने से,
कर्नाटक, पंजाब, मराठा, बंगाली करने से,
तुम गज़वा ए हिंद करो, फिर पाकिस्तान बनाओ,
औरंगज़ेबी शासन का परचम फिर से लहराओ,
जात पात में बँटे हुए हम भारत के वासी हैं,
एक बार मर गए तो फिर जन्मेंगे अविनाशी हैं,
हाथ पे रख कर हाथ राह तकेंगे अवतारों की,
वो आएँगे, निपटेंगे, सुध लेंगे बेचारों की, 
तब तक अपनी नफरत को तुम हम पर बरपा जाओ,
हम हैं भेड़ बकरियों जैसे, जब जी चाहे खा जाओ।