कई साल पहले तीन कवियों ने वाशिंगटन राज्य के ओलम्पिक नेशनल पार्क की बर्फ़ीली पहाड़ियों पर कदम रखा। ठंडी हवाओं और चमचमाती बर्फ़ के बीच अचानक ही कुछ पंक्तियाँ उनके होंठों पर उतर आईं। उन पंक्तियों में न जाने क्यों उस पूरे क्षण का सार समा गया था। बादलों के नीचे होते हुए भी मनुष्य की आत्मा गगन से ऊँची है—यह विश्वास पर्वत, आकाश और डूबते सूरज सबके साक्षात् खड़ा था। वह दृश्य केवल आँखों को ही नहीं, आत्मा को भी छू रहा था। मानो प्रकृति ने उस क्षण अपनी भाषा में गीत प्रवाहित किया हो।
नीचे बादल, ऊपर हम हैं,
हम क्या नील गगन से कम हैं।
नीचाई का जग में शासन,
ऊँचाई पाती निर्वासन,
हिम शिखरों पर जमा चुकी है,
शीतलता अपना पद्मासन,
चन्दन की गंधों से सुरभित,
हम खुशबू वाले मौसम हैं।
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