बाबा विश्वनाथ का त्रिनेत्र खुल जाएगा

Dec 9, 2010

भोले भाले लोग गंगा आरती में तल्लीन,
पलकों को मूंदे किये मन में विधाता को,
धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य लिए श्रद्धालु,
दे रहे थे हाथ जोड़े धन्यवाद् माता को,

ठीक उसी क्षण किया असुरों नें उत्पात,
सुरसरी, गंगा मैया रक्त से नहा गयीं,
दुष्ट दानवों की पापमयी ये कुटिल लीला,
एक छोटी बिटिया को संग में बहा गयी,

कौन सी जिहाद, कैसी कौम, कैसा इस्लाम,
तुमको सिखाता भोले मासूमों को मारना,
पहले तो जा के इंसान बन दिखलाओ,
फिर हो सके तो तुम कोई धर्म धारना,

'माय हार्ट गोज़ आउट' शब्दों में बोल कर,
समिति गठित कर आप मत छूटिये,
बांसुरी बजाना छोड़ मेरे मनमोहनजी,
'सत श्री अकाल' बोल दुश्मनों पे टूटिये.

भारत की पुण्य भूमि क्षमाशील है परन्तु,
शिशुपाल का हर एक पाप तुल जाएगा,
दोज़ख में भी न छिप कर रह पाओगे जो,
बाबा विश्वनाथ का त्रिनेत्र खुल जाएगा.

ज़िन्दगी, तू मुझे सताना छोड़ दे

Oct 12, 2010

ज़िन्दगी, तू मुझे सताना छोड़ दे,
जिन संकरी गलियों में बचपन बैठा है,
उन गलियों में आना जाना छोड़ दे.

मुझसे भूल हुयी, भूल पर भूल हुयी,
जो सोने की रेत संभाल के रखी थी,
जब बक्सा खोला तो वो सब धूल हुयी,
अब सोने का मोह पुराना छोड़ दे.
ज़िन्दगी, तू मुझे सताना छोड़ दे.

पीड़ा नें आभावों के संग ब्याह किया,
हुआ आंकलन जब पूरा तो ये पाया,
मैंने बस कोरे काग़ज़ को स्याह किया,
अब तो झूठा प्यार निभाना छोड़ दे.
उन गलियों में आना जाना छोड़ दे.

-अभिनव

दिनकर जी की रचनाओं की प्रस्तुति

Oct 2, 2010

डॉ उर्मिलेश की सुप्रसिद्ध कविता - वन्दे मातरम

Sep 27, 2010

एक छंद

Sep 4, 2010

कल रात सपने में आई एक परछाई,
कह गयी मन की उमंग न बदलना,
झूठ की हवाएं चाहे जितनी चिरौरी करें,
सत्य बोलने का कभी ढंग न बदलना,
शब्द शब्द ब्रह्म मान रचना नवल गीत,
टूट टूट गाने की तरंग न बदलना,
कविता से तालियों की रंगत रहे न रहे,
तालियों से कविता का रंग न बदलना.

- अभिनव

माखन चोर - डॉ बृजेन्द्र अवस्थी (जन्माष्टमी की अनेक शुभकामनाएं)

Sep 2, 2010

आप सभी को जन्माष्टमी की अनेक शुभकामनाएं. डॉ बृजेन्द्र अवस्थी की निम्न कविता में बाल गोपाल द्वारा की गयी माखन चोरी की लीला का बहुत सुन्दर वर्णन पढने को मिलता है. यदि संभव हो तो इस कविता को बोल बोल कर पढ़ियेगा, आनंद दूना हो जाएगा.

माखन चोर - डॉ बृजेन्द्र अवस्थी 

एक बार सूना घर पा कर के घनश्याम, माखन उठा के मुख में ज्यूँ धरने लगे,
बिम्ब प्रतिबिंबित उन्हीं के मणि खम्बों पर, भेदिया के मन में संदेह भरने लगे,
भेद खुला जान छांछ उन्हें भी खिलने लगे, झर झर लोचनों से अश्रु झरने लगे,
कहना न मैया से बलिया लूं तुम्हारी भैया, बार बार बिनती कन्हैया करने लगे.

इतने में आ गयीं यशोदा माता उसी ठौर, अंग अंग छांछ लिपटाये नंदलाल थे,
माखन करों से प्रतिबिम्ब को खिला रहे थे, कुंचित कुटिल कुन्तलों के बाल व्याल थे,
खम्ब में स्वरुप, रूप में छवि भरे नयन, नयनों में अश्रु, अश्रुओं में चित्रजाल थे,
मानो क्षीर सिन्धु की नहाई गन माल पर रूप भरे मोती रहे उगल मराल थे.

आया देख माता को अकस्मात् उसी ठौर, सूझी ये नवल लीला नवल किशोर को,
बिम्ब को दिखा के बोल उठे देख देख मैया, यह ढीठ घूर जो रहा है मेरी ओर को,
अभी अभी माखन चुरा के यही खा रहा था, देख व्यर्थ अश्रु से भरे हैं दृग कोर को,
पोर दाबे मुख में हंसी में तो खड़ी विभोर, क्यों नहीं पकड़ती है माखन के चोर को.

मेरे हाथ मुख में लगा ये छांछ देख कर, मैया क्या इसी ने तेरा चित्त भरमाया है,
कहूं सही बात मेरी बात मान मेरी अम्मा, अभी छीना झपटी में इसी ने लगाया है,
तुझको प्रतीति नहीं तो निहार नवनीत उसके ही पास है जो उसी ने चुराया है,
खाया कुछ, कुछ अभी हाथ में बचाया, कुछ मुख पे लगाया, कुछ भूमि पे गिराया है.

एक गीत - अकेले रहते हैं हम लोग

Aug 11, 2010

समूह के सभी सदस्यों को सदर नमस्कार, कुछ दिन पहले आ अनु जी नें 'हास्य दर्शन - २' से कुछ प्रस्तुत करने का आदेश दिया था. लीजिये प्रस्तुत है एक प्रवासी गीत जो कि मन में होने वाले तर्क वितर्क को शब्दों में ढलने का एक प्रयास है.

अकेले रहते हैं हम लोग
 
अकेले रहते हैं हम लोग,
बनाया है जीवन को भोग,
फँस गए हैं जंजालों में,
रह पायेंगे आखिर कैसे,
हम घरवालों में,
कि बिछुड़े पंछी हैं.

हुयी जब बहना कि शादी,
फोन पर रोई जब दादी,
उठी जब ताया कि अर्थी,
हुए जब फूफा जी भर्ती,
वहां सुख दुःख के अजूबे थे,
यहाँ हम काम में डूबे थे,
सुनहरे हैं अपने पलछिन,
जेब में पैसे हैं लेकिन,
होंगे शामिल कंगालों में,
रह पायेंगे आखिर कैसे,
हम घरवालों में,
कि बिछुड़े पंछी हैं.

वहां पर लाईट जाती है,
पड़ोसिन शोर मचाती है,
रिसर्वेशन का फंदा है,
वहां का ट्रैफिक गन्दा है,
हर तरफ भीड़ भड़क्का है,
हर तरफ धूल
धड़क्का है,
लोग भी कितने रूखे हैं,
सभी दौलत के भूखे हैं,
फटते हैं बम चौबारों में,
रह पायेंगे आखिर कैसे,
हम घरवालों में,
कि बिछुड़े पंछी हैं.
 
यहाँ पर कितनी सुविधा है,
भला क्यों मन में दुविधा है,
फूल सब सुन्दर खिलते हैं,
लोग मुस्काते मिलते हैं,
मुन्ना तलवार चलाता है,
मुन्नी को पियानो आता है,
यहाँ दिन रात सुहाने हैं,
और भी लाख बहाने हैं,
मन में पलते घोटालों में,
रह पायेंगे आखिर कैसे,
हम घरवालों में,
कि बिछुड़े पंछी हैं.

वहां बच्चों पर काबू है,
वहां के स्वाद में जादू है,
सड़क पर चाट के ठेले हैं,
उन्हीं गलियों में खेले हैं,
कोई बर्तन धो जाता है,
झाड़ू कटका हो जाता है,
कपड़े प्रेस होकर आते हैं,
वहां त्यौहार मनाते हैं,
फिर भी डूबे हैं ख्यालों में,
रह पायेंगे आखिर कैसे,
हम घरवालों में,
कि बिछुड़े पंछी हैं.

आज हैं अपने घर से दूर,
भले कितने भी हों मशहूर,
हो दौलत भले ज़माने की,
हैं खुशियाँ सिर्फ दिखाने की,
याद जब मां की आती है,
रात कुछ कह कर जाती है,
ह्रदय में खालीपन सा है,
लौट चलने का मन सा है,
मगर हैं घिरे सवालों में,
रह पायेंगे आखिर कैसे,
हम घरवालों में,
कि बिछुड़े पंछी हैं.
 
हमारे दिल का सपना है,
देश जैसा है अपना है,
वहां परियों की कहानी है,
वहां गंगा का पानी है,
वहां माटी में खुशबू है,
वहां हर चीज़ में जादू है,
वहां रोटी है फूली सी,
वहां गलियां हैं भूली सी,
न उलझें व्यर्थ सवालों में,
रहना सीख ही जायेंगे,
अपने घरवालों में.....
रहना सीख ही जायेंगे,
अपने घरवालों में.....


-
अभिनव
www.kaviabhinav.com

सियैटल में झिलमिलाया, "झिलमिल २०१० - हास्य कवि सम्मलेन"

Jun 29, 2010

जून २६ २०१०, सियैटल, संयुक्त राज्य अमेरिका: हिंदी भाषा का जो स्वरुप कविताओं में उजागर होता है वह अत्यंत आनंद प्रदान करने वाला होता है. सधे हुए कवि सम्मेलनों में प्रस्तुतिकरण के कौशल द्वारा कविताओं की मिठास में चार चाँद लग जाते हैं. यदि बात हास्य कविताओं की हो रही हो तो फिर मिठास और आनंद का एक नाभकीय विस्फोट होता है. सिएटल नगरी में इस सदी के प्रथम हास्य कवि सम्मलेन का आयोजन २६ जून २०१० को हुआ. सांस्कृतिक संस्था प्रतिध्वनि की ओर से प्रस्तुत हास्य कवि सम्मलेन, झिलमिल २०१० में शताधिक श्रोताओं नें लगभग चार घंटे तक अनेक चटपटी और झिलमिलाती हुई हास्य कविताओं का रसास्वादन किया. विभूति नें मां सरस्वती की वंदना कर कार्यक्रम को प्रारंभ किया. इस कवि सम्मलेन में न्यू यार्क से पधारी डॉ बिन्देश्वरी अग्रवाल, सिनसिनाटी से आई रेणु राजवंशी गुप्त एवं सियैटल नगरी से अंकुर गुप्त, अनु गर्ग, निहित कौल, अगस्त्य कोहली, सूरज कुमार एवं अभिनव शुक्ल नें अपनी कविताओं का पाठ किया. कार्यक्रम का संचालन अभिनव शुक्ल नें किया. नगरी में पहली बार हुए इस आयोजन को श्रोताओं नें खूब सराहा और आशा व्यक्त करी कि भविष्य में और भी कवि सम्मेलनों से सियैटल को झिलमिलाता रहना चाहिए.


चित्र १ : (बाएँ से दायें) - अंकुर गुप्त, अनु गर्ग, निहित कौल, अभिनव शुक्ल, अगस्त्य कोहली, सूरज कुमार, रेणुराजवंशी गुप्त एवं डॉ बिन्देश्वरी अग्रवाल [कवि सम्मलेन के बाद का एक दृश्य]


चित्र : कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए अभिनव शुक्ल तथा मंच पर रेणु राजवंशी गुप्त एवं डॉ बिन्देश्वरी अग्रवाल

चित्र : अगस्त्य कोहली अपना व्यंग्य पाठ करते हुए

चित्र : रेणु राजवंशी चित्र ५: डॉ बिन्देश्वरी अग्रवाल

चित्र ६: अंकुर गुप्त
चित्र ७: निहित कौल
चित्र ८: अनु गर्ग
चित्र ९: सूरज कुमार
चित्र १०: विभूति
आप झिलमिल कि वेबसाइट यहाँ देख सकते हैं।
सभी चित्र चित्रकार सुभाष चंद्रन के सौजन्य से.

'झिलमिल - हास्य कवि सम्मलेन' - सिएटल - २६ जून २०१०

Jun 20, 2010

इधर सिएटल में 'झिलमिल - हास्य कवि सम्मलेन' का आयोजन हो रहा है. प्रतिध्वनि संस्था द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में अमेरिका के कुछ कवि अपनी रचनाओं का पाठ करेंगे. सम्मलेन का मुख्य स्वर हास्य रहेगा. यदि आपके कोई मित्र सिएटल अथवा इसके आस पास कहीं हों तो आप उन तक इस कार्यक्रम की सूचना पहुंचा सकते हैं.

JHILMIL / झिलमिल
हिन्दी हास्य कवि सम्मेलन


An Evening of Laughter and Hindi Poetry
Featuring special invited poets (डॉ बिन्देश्वरी अग्रवाल, रेनू राजवंशी गुप्त, अगस्त्य कोहली एवं अभिनव शुक्ल) and local talent

Saturday, June 26th, 2010

6:00 PM


Brechemin Auditorium,
Music Building,
University of Washington,
Seattle, WA 98195


Tickets

$15 General admission ($18 at gate)
$12 Pratidhwani members ($15 at gate)
$10 Full time students ($12 at gate)

For more information
http://www.pratidhwani.org/jhilmil
info@...
425-522-3570






तुलसी बाबा तुमने कैसे

Jun 6, 2010



तुलसी बाबा तुमने कैसे इतना बड़ा ग्रन्थ लिख डाला,
कैसे प्रभु राम के रस में डूबे, शब्द शब्द को ढाला,
कैसे भाषा चुनी, भाव कैसे बांधे, कैसे काग़ज़ पर,
कैसी कलम उठाई, कैसे बैठे थे, कैसे आसन पर,
किस प्रहर लिखा, कैसा भोजन, कैसा पानी तुम पीते थे,
कैसे थे वस्त्र तुम्हारे, तुम कैसे मित्रों में जीते थे?

बाबा बोले सपने में, "मुझको तो कुछ भी दिखा नहीं,
'श्री रामचंद्र की जय' के सिवा मैंने तो कुछ भी लिखा नहीं."

सिएटल में विजय तेंदुलकर का 'कन्यादान'

May 17, 2010

चित्र १ (सौजन्य: विनायक सुले)

चित्र २ (सौजन्य: विनायक सुले)

चित्र ३ (सौजन्य: विनायक सुले)

चित्र ४ (सौजन्य: विनायक सुले)


विजय तेंदुलकर के सुप्रसिद्ध नाटक 'कन्यादान' का मंचन सिएटल की सांस्कृतिक संस्था प्रतिध्वनि द्वारा वॉशिंग्टन विश्वविद्यालय स्थित, जातीय सांस्कृतिक केंद्र के सभागार में किया गया। प्रतिभा सदैव नयी चुनौतियों की तलाश में रहती है. चुनौती जितनी कठिन हो उसे स्वीकार करने का आनंद भी उतना ही अधिक होता है. पिछले वर्ष प्रतिध्वनि की नाट्य मंडली शरद जोशी के नाटक "एक था गधा उर्फ़ अलादाद खां" का सफलतापूर्वक मंचन कर चुकी है. एक व्यंग्यात्मक नाटक की सफलता के बाद एक गंभीर विषय को उठाना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य होता है. मुझे ऐसा लगता है कि इस चुनौती का सामना इस नाटक से जुड़े सभी कलाकारों नें डट कर किया है तथा इसमें सफलता भी प्राप्त की है.

नाटक की विषयवस्तु एक समाजवादी ब्राह्मण विधायक के परिवार तथा उसके दलित दामाद के आस पास घूमती है. यह एक ऐसा नाटक था जिसकी सफलता पूरी तरह से इसके पात्रों के अभिनय और संवाद अदायगी पर टिकी हुयी थी. अनेक कलाकारों नें अपने पात्र के साथ न्याय करते हुए दर्शकों को प्रभावित किया.

कन्या की मां का पात्र निभाने वाली नंदा नें मां के प्रेम और क्रोध दोनों को मंच पर जीवंत कर दिया. मंच पर एक दृश्य में अपनी पुत्री को समझाते हुए मां की आँखों में आंसू आ जाते हैं. ये दृश्य देख कर दर्शक भी भावुक हुए बिना नहीं रह सकते. मुझे मुनव्वर राना की दो पंक्तियाँ याद आती हैं, 'कुछ इस तरह से मेरे गुनाहों को वो धो देती है, मां जब बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है'. नंदा का अभिनय सहज था तथा वास्तविकता का पुट लिए हुआ था शायद इसी वजह से दर्शक उनके संवादों से सीधे सीधे जुड़ रहे थे.

अभिनय की दृष्टि से कन्या के विधायक पिता का पात्र निभाना सबसे अधिक टेढ़ी खीर था. जयंत का अभिनय शुरू शुरू में कुछ असहज सा लगता है पर जैसे जैसे दर्शक नाटक में डूबता जाता है उसके अभिनय का प्रभाव बढ़ता जाता है. नाटक के अंत तक आते आते जयंत दर्शकों की साहनभूति प्राप्त करने में भी सफल रहे. जयंत नें घर के मुखिया के पात्र को बखूबी निभाया है.

एक आदर्शवादी पिता की पुत्री तथा एक दलिक लेखक की पत्नी के रूप में अदिति का अभिनय प्रभावशाली रहा. नाटक के प्रारंभ में अंतर्मुखी सी दिखने वाली लड़की आगे चल कर अपनी हिम्मत के बल पर कठिन परिस्थितियों का सामना करने वाली तथा अपने पक्ष को दृढ़ता पूर्वक सामने रखने वाली कैसे बन जाती है, यह परिवर्तन अदिति नें अपने भावों के सम्प्रेषण से भली प्रकार दिखाया है.

अंकुर गुप्ता नें एक दलित लेखक तथा कन्या के पति की भूमिका निभाई. ज्ञातव्य है कि अंकुर नगरी के लोकप्रिय कलाकार हैं तथा इस नाटक से पहले, 'आठ घंटे' जैसे नाटक में गंभीर पात्र का सटीक अभिनय कर चुके हैं. इस नाटक में अंकुर को देख कर लग रहा था कि उन्होंने इस पात्र को निभाने के लिए काफी मेहनत करी है. कन्या के भाई के रूप में भूषण नें भी सहज अभिनय किया है. कभी साहनभूति, तो कभी दुःख, तो कभी गुस्सा, सभी भावों का समन्वय करने में भूषण को सफलता प्राप्त हुई. सीपी और रवि मंच पर बस छोटे से दृश्य के लिए आये तथा अपने हाव भाव के चलते अपनी उपस्तिथि दर्ज करने में सफल रहे. मंच सज्जा तथा प्रकाश की व्यवस्था सौम्य रही.

नाटक का निर्देशन सधा हुआ था. अगस्त्य के अनुभवी निर्देशन नें इस चुनौतीपूर्ण नाटक को सरलता से ताने बाने में बांध लिया था. विजय तेंदुलकर के इस नाटक के साथ न्याय करने में अगस्त्य के निर्देशन नें कोई कसर नहीं छोड़ी है.

हांलाकि नाटक अच्छा रहा पर यदि हम एक विश्लेषात्मक दृष्टि डालें तो कुछ सुधार कि गुंजाईश भी दिखाई पड़ी. नाटक में गालियों के प्रयोग से बचा भी जा सकता था. एक दृश्य से दुसरे दृश्य में प्रत्यावर्तन करते समय बजने वाला संगीत नाटक की विषय वस्तु से मेल नहीं खा रहा था. पार्श्व संगीत का प्रयोग अंतिम दृश्य के लिए किया गया था जो कि अच्छा बन पड़ा था. अन्य दृश्यों में भी पार्श्व संगीत का प्रयोग किया जा सकता था.

एक जटिल नाटक के सफलतापूर्वक मंचन के लिए इससे जुड़े सभी लोगों को अनेक बधाइयाँ तथा शुभकामनाएं। यह आशा की जा सकती है की आने वाले समय में हमें प्रतिध्वनि नाट्य मण्डली की अगली प्रस्तुति शीघ्र ही देखने को मिलेगी.

* कन्यादान कि वेबसाईट यहाँ देखें.

कविवर देवेन्द्र शुक्ल को समर्पित एक काव्य संध्या

May 3, 2010

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश मंडल आफ अमेरिका (उपमा) द्वारा आयोजित कवि सम्मलेन में जाना हुआ. कार्यक्रम में शकुंतला बहादुर, नीलू गुप्ता, अर्चना पंडा, संजय माथुर, कोहिनूर चटर्जी सहित बे एरिया के अनेक कवियों को सुनाने का सुखद अनुभव प्राप्त हुआ. मुझे यह कवि सम्मलेन अन्य अनेक कार्यक्रमों से अलग लगा अतः सोचा कि क्यों न अपने अनुभवों को ब्लॉग के रूप में सहेज लूं.

यह कार्यक्रम बे एरिया के लोकप्रिय हास्य कवि स्वर्गीय श्री देवेन्द्र शुक्ल जी की पावन स्मृति को समर्पित था. अमेरिका में आई इस आर्थिक मंदी के क्रूर पंजों नें देवेन्द्र जी को छीन कर मुझे व्यक्तिगत रूप से आहात किया है. इससे पहले मैं जब जब सैन फ्रांसिस्को की ओर गया तब तब मंच पर देवेन्द्र जी मेरे साथ रहे. मैंने उन्हें इस बार बहुत मिस किया. इस कर्यक्रम में मंच पर देवेन्द्र जी के लिए एक खाली कुर्सी रखी गयी थी. उस कुर्सी के आगे दीपक जलाये गए तथा बाकी सभी कवि मंच के नीचे बैठे. बड़े भावपूर्ण रूप में उपमा की अध्यक्षा नीलू गुप्ता जी नें देवेन्द्र जी की स्मृतियों को प्रणाम किया तथा सब श्रोताओं नें दो मिनट का मौन रखा. आम तौर पर श्रधांजलि एक औपचारिकता मात्र होकर रह जाती है, पर इस कार्यक्रम में ऐसा नहीं लगा. नीलू जी नें अपनी संस्था के सदस्यों को एक एक कर के मंच पर बुलाया. सबको बुलाते समय उनहोंने काव्यात्मक पंक्तियाँ पढ़ीं तथा सबका बड़ा अच्छा परिचय दिया. संस्था से सदस्य एक एक कर मंच पर आये और एक एक दीपक जला कर अपने स्थान पर लौट गए.

आज के दौर में कवि सम्मलेन के मंचों से काव्यधारा सूखती जा रही है तथा लाफ्टर धारा उफान पर है. ऐसे में इस कार्यक्रम में कुछ नए तरीके की अच्छी हास्य रचनायें भी सुनने को मिलीं. एक ओर जहाँ कोहिनूर द्वारा प्रस्तुत 'छप छपाक' में किसी नृत्यांगना के कदमों की थाप की ध्वनि सुनने को मिली तो वहीं संजय नें मूछों पर एक हास्य रचना पढ़ी. वरिष्ठ कवयित्री शकुंतला बहादुर नें कम सुनने की समस्या पर एक हास्य रचना पढ़ी. लोकप्रिय कवयित्री अर्चना पंडा नें अपने रेडियो जनित अनुभवों को कविता में बाँधा. जो बात अच्छी लगी वो यह की अधिकतर कवितायें जीवन के अनुभवों से निकली थीं तथा किसी भी प्रकार की कृत्रिमता से दूर थीं. भोगे हुए यथार्थ का चित्रण निसंदेह अधिक गहरी पैठ रखने वाला होता है.

"नौकरी की टोकरी" जैसी, अमेरिका आई नारी के मन को प्रतिबिंबित करती सटीक रचना लिखने वाली अर्चना जी नें अपने काव्य पाठ के कुछ अंश यू ट्यूब पर भी अपलोड किये हैं. आप कार्यक्रम के कुछ चित्रों को नीचे देख सकते हैं.















शर्मा बंधुओं द्वारा मानस अनुष्ठान - १४, १५ एवं १६ मई - बंगलूरू के मित्र अवश्य जाएँ

Apr 28, 2010

मेरे बड़े भाईसाहब डॉ आदित्य शुक्ल रामचरितमानस के प्रबुद्ध वक्ता है. उन्होंने ये जानकारी दी थी कि ब्रह्मवादी सांस्कृतिक संघ, शर्मा बंधुओं द्वारा मानस अनुष्ठान कराने के विषय में विचार कर रहा है. आज उनकी ई मेल से सूचना प्राप्त हुयी कि कार्यक्रम १४, १५ एवं १६ मई को है. मेरा आपसे अनुरोध है कि जो मित्र बंगलूरू में हैं वे इसमें अवश्य जाएँ और जो वहां नहीं हैं वे अपने मित्रों तक ये सूचना पहुँचाने की कृपा करें. शर्मा बंधुओं द्वारा प्रस्तुत "सूरज की गर्मी से" तो आपको याद ही होगा, उनके द्वारा प्रस्तुत रामायण की एक बानगी आप नीचे दिए वीडियो में देख सकते हैं.



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Brahmvadi Sanskritk Sangh (R), Bangalore is a committed organization towards Social upliftment and Cultural development. This Year is the Silver Jubilee Year of the organization. In the wake of this celebration, the BSS had decided to organize various cultural, literary and social activities.

In the subsequent, Sangh is going to organize “MANAS ANUSHTHAN” on 14th, 15th and 16th May 2010 at Chowdiah Memorial Hall, Bangalore. In this program renowned Bhajan Singers “SHARMA BANDHU” will perform the distinctive singing and unique interpretation of Shri Ramcharitmanas an eternal epic of Goswami Tulsidas.

My humble request you to participate in the above program.

You can call me for more info.

Regards
Aditya
9844503371

नव निधि के उजाले

Apr 26, 2010

ज्ञान के कारागृहों में दंभ के मुस्तैद ताले,
भवन की ऊँची छतों पर रूढ़ियों के सघन जाले,
देख कर विज्ञान की प्रगति विधि भी है अचंभित,
हो पुरातन या नवल जो व्यर्थ है, वो सब तिरोहित,
हम पताका हम ध्वजा हम स्वयं ही पहिये हैं रथ के,
दो दिशाओं में हैं गुंजित स्वर जगत में प्रगति पथ के,
पीढियां अक्षम हुयी हैं निधि नहीं जाती संभाले,
पीढियां सक्षम हुयी हैं नव निधि के हैं उजाले.

सुनिए साक्षात्कार - जसपाल भट्टी एवं सविता भट्टी को विवाह की रजत जयंती की शुभकामनाएं

Mar 24, 2010



इधर अमेरिका के पूर्वी तट पर हुए एक कार्यक्रम में सविताजी एवं जसपाल भट्टी जी से मिलने का सुअवसर मिला. हमें भी कवितायें सुनाने के लिए इस कार्यक्रम में बुलाया गया था. भट्टी जी के फैन तो हम बचपन से हैं. मौके का लाभ उठाते हुए हमने उनका साक्षात्कार भी ले लिया. आप नीचे सुन सकते हैं. कार्यक्रम के कुछ चित्र भी दिए जा रहे हैं.

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आज इनके विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ है, इस अवसर पर सविताजी और जसपालजी को अनेक शुभकामनाएं.

उल्टा पुल्टा हो रहा दुनिया का हर काम,
फुल टेंशन में खो गया जीवन का आराम,
जीवन का आराम फ्लॉप शो बना हुआ है,
चेहरा फिर भी मुस्कानों से सना हुआ है,
सविता औ जसपाल व्यंग के बाण चलायें,
महकें चहकें लहकें हरदम हसें हसायें.

















जली बरेली, हमको क्या?

Mar 15, 2010

नकली जीवन जी कर असली गीत लिखें ये मुश्किल है,
लेकिन असली जीवन भी क्या अब जीने के काबिल है,

प्रश्न बड़ा है, अड़ा पड़ा है, और खड़ा है रस्ते पर,
टंका हुआ है चाँद सितारा, क्यों मुजरिम के बस्ते पर,

भूख, गरीबी, मज़हब, बीबी, बदला खून खराबे का,
इन सब में ही छिपा है जंतर मंतर काशी काबे का,

बम्ब धमाके, चोरी डाके, खूब ठहाके, हमको क्या?
होली खेली, रंगी हथेली, जली बरेली, हमको क्या?

पिलखुवा में हुयी हास्य दर्शन काव्य संध्या

Feb 22, 2010