महा लिख्खाड़
-
-
मचान के देखुआर अनूप सुकुल4 days ago
-
-
बाग में टपके आम बीनने का मजा5 months ago
-
गणतंत्र दिवस २०२०4 years ago
-
राक्षस4 years ago
-
-
इंतज़ामअली और इंतज़ामुद्दीन5 years ago
-
कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण और अर्जुन7 years ago
-
Demonetization and Mobile Banking8 years ago
-
मछली का नाम मार्गरेटा..!!10 years ago
नाप तोल
1 Aug2022 - 240
1 Jul2022 - 246
1 Jun2022 - 242
1 Jan 2022 - 237
1 Jun 2021 - 230
1 Jan 2021 - 221
1 Jun 2020 - 256
माखन चोर - डॉ बृजेन्द्र अवस्थी (जन्माष्टमी की अनेक शुभकामनाएं)
Sep 2, 2010आप सभी को जन्माष्टमी की अनेक शुभकामनाएं. डॉ बृजेन्द्र अवस्थी की निम्न कविता में बाल गोपाल द्वारा की गयी माखन चोरी की लीला का बहुत सुन्दर वर्णन पढने को मिलता है. यदि संभव हो तो इस कविता को बोल बोल कर पढ़ियेगा, आनंद दूना हो जाएगा.
माखन चोर - डॉ बृजेन्द्र अवस्थी
बिम्ब प्रतिबिंबित उन्हीं के मणि खम्बों पर, भेदिया के मन में संदेह भरने लगे,
भेद खुला जान छांछ उन्हें भी खिलने लगे, झर झर लोचनों से अश्रु झरने लगे,
कहना न मैया से बलिया लूं तुम्हारी भैया, बार बार बिनती कन्हैया करने लगे.
इतने में आ गयीं यशोदा माता उसी ठौर, अंग अंग छांछ लिपटाये नंदलाल थे,
माखन करों से प्रतिबिम्ब को खिला रहे थे, कुंचित कुटिल कुन्तलों के बाल व्याल थे,
खम्ब में स्वरुप, रूप में छवि भरे नयन, नयनों में अश्रु, अश्रुओं में चित्रजाल थे,
मानो क्षीर सिन्धु की नहाई गन माल पर रूप भरे मोती रहे उगल मराल थे.
आया देख माता को अकस्मात् उसी ठौर, सूझी ये नवल लीला नवल किशोर को,
बिम्ब को दिखा के बोल उठे देख देख मैया, यह ढीठ घूर जो रहा है मेरी ओर को,
अभी अभी माखन चुरा के यही खा रहा था, देख व्यर्थ अश्रु से भरे हैं दृग कोर को,
पोर दाबे मुख में हंसी में तो खड़ी विभोर, क्यों नहीं पकड़ती है माखन के चोर को.
मेरे हाथ मुख में लगा ये छांछ देख कर, मैया क्या इसी ने तेरा चित्त भरमाया है,
कहूं सही बात मेरी बात मान मेरी अम्मा, अभी छीना झपटी में इसी ने लगाया है,
तुझको प्रतीति नहीं तो निहार नवनीत उसके ही पास है जो उसी ने चुराया है,
खाया कुछ, कुछ अभी हाथ में बचाया, कुछ मुख पे लगाया, कुछ भूमि पे गिराया है.
प्रेषक: अभिनव @ 9/02/2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 प्रतिक्रियाएं:
बहुत ही सुन्दर कविता। बोलकर पढ़ने में रस आ गया।
Post a Comment