बनाया है जीवन को भोग,
फँस गए हैं जंजालों में,
रह पायेंगे आखिर कैसे,
हम घरवालों में,
कि बिछुड़े पंछी हैं.
फोन पर रोई जब दादी,
उठी जब ताया कि अर्थी,
हुए जब फूफा जी भर्ती,
वहां सुख दुःख के अजूबे थे,
यहाँ हम काम में डूबे थे,
सुनहरे हैं अपने पलछिन,
जेब में पैसे हैं लेकिन,
होंगे शामिल कंगालों में,
रह पायेंगे आखिर कैसे,
हम घरवालों में,
कि बिछुड़े पंछी हैं.
पड़ोसिन शोर मचाती है,
रिसर्वेशन का फंदा है,
वहां का ट्रैफिक गन्दा है,
हर तरफ भीड़ भड़क्का है,
हर तरफ धूल धड़क्का है,
लोग भी कितने रूखे हैं,
सभी दौलत के भूखे हैं,
फटते हैं बम चौबारों में,
रह पायेंगे आखिर कैसे,
हम घरवालों में,
कि बिछुड़े पंछी हैं.
भला क्यों मन में दुविधा है,
फूल सब सुन्दर खिलते हैं,
लोग मुस्काते मिलते हैं,
मुन्ना तलवार चलाता है,
मुन्नी को पियानो आता है,
यहाँ दिन रात सुहाने हैं,
और भी लाख बहाने हैं,
मन में पलते घोटालों में,
रह पायेंगे आखिर कैसे,
हम घरवालों में,
कि बिछुड़े पंछी हैं.
वहां बच्चों पर काबू है,
वहां के स्वाद में जादू है,
सड़क पर चाट के ठेले हैं,
उन्हीं गलियों में खेले हैं,
कोई बर्तन धो जाता है,
झाड़ू कटका हो जाता है,
कपड़े प्रेस होकर आते हैं,
वहां त्यौहार मनाते हैं,
फिर भी डूबे हैं ख्यालों में,
रह पायेंगे आखिर कैसे,
हम घरवालों में,
कि बिछुड़े पंछी हैं.
आज हैं अपने घर से दूर,
हो दौलत भले ज़माने की,
हैं खुशियाँ सिर्फ दिखाने की,
याद जब मां की आती है,
रात कुछ कह कर जाती है,
ह्रदय में खालीपन सा है,
लौट चलने का मन सा है,
मगर हैं घिरे सवालों में,
रह पायेंगे आखिर कैसे,
हम घरवालों में,
कि बिछुड़े पंछी हैं.
देश जैसा है अपना है,
वहां परियों की कहानी है,
वहां गंगा का पानी है,
वहां माटी में खुशबू है,
वहां हर चीज़ में जादू है,
वहां रोटी है फूली सी,
वहां गलियां हैं भूली सी,
न उलझें व्यर्थ सवालों में,
रहना सीख ही जायेंगे,
अपने घरवालों में.....
रहना सीख ही जायेंगे,
अपने घरवालों में.....
- अभिनव
www.kaviabhinav.com
6 प्रतिक्रियाएं:
कहानी, कविता की जुबानी।
bahut achche se man ke bhaav vayakt kiye hain aapne
har pravasi ka man inhi sab mein uljha hua hai
Abhinavji
sab kuchh kah detee hai ye kavita
pyaas bhee, hook bhee
dikha dete hai shabd aapke
vo tez dhaar
jis par ham sab chalne ko baadhya hain
kahaan kitne lahuluhaan hain
ye kavita padh kar pataa chalta hai
bahut achchhe
Ashok Vyas
behtreen abhivyakti....
परदेस में रहते हुए वतन की याद दिल को झकझोर जाती होगी....आपकी इस कविता का मर्म हम दूर बैठे भी महसूस करते हैं ...मुझे तो कई बार ऐसा भी लगता है कि सिर्फ दौलत और शोहरत के लिए दूर देश जाने में औचित्य नहीं है ...! खैर लेकिन आपकी इस कविता को पढ़ते हुए मन भर आया है ......!
Badhiya Abhinav bhai
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