पिछले दिनों उत्तर प्रदेश मंडल आफ अमेरिका (उपमा) द्वारा आयोजित कवि सम्मलेन में जाना हुआ. कार्यक्रम में शकुंतला बहादुर, नीलू गुप्ता, अर्चना पंडा, संजय माथुर, कोहिनूर चटर्जी सहित बे एरिया के अनेक कवियों को सुनाने का सुखद अनुभव प्राप्त हुआ. मुझे यह कवि सम्मलेन अन्य अनेक कार्यक्रमों से अलग लगा अतः सोचा कि क्यों न अपने अनुभवों को ब्लॉग के रूप में सहेज लूं.
यह कार्यक्रम बे एरिया के लोकप्रिय हास्य कवि स्वर्गीय श्री देवेन्द्र शुक्ल जी की पावन स्मृति को समर्पित था. अमेरिका में आई इस आर्थिक मंदी के क्रूर पंजों नें देवेन्द्र जी को छीन कर मुझे व्यक्तिगत रूप से आहात किया है. इससे पहले मैं जब जब सैन फ्रांसिस्को की ओर गया तब तब मंच पर देवेन्द्र जी मेरे साथ रहे. मैंने उन्हें इस बार बहुत मिस किया. इस कर्यक्रम में मंच पर देवेन्द्र जी के लिए एक खाली कुर्सी रखी गयी थी. उस कुर्सी के आगे दीपक जलाये गए तथा बाकी सभी कवि मंच के नीचे बैठे. बड़े भावपूर्ण रूप में उपमा की अध्यक्षा नीलू गुप्ता जी नें देवेन्द्र जी की स्मृतियों को प्रणाम किया तथा सब श्रोताओं नें दो मिनट का मौन रखा. आम तौर पर श्रधांजलि एक औपचारिकता मात्र होकर रह जाती है, पर इस कार्यक्रम में ऐसा नहीं लगा. नीलू जी नें अपनी संस्था के सदस्यों को एक एक कर के मंच पर बुलाया. सबको बुलाते समय उनहोंने काव्यात्मक पंक्तियाँ पढ़ीं तथा सबका बड़ा अच्छा परिचय दिया. संस्था से सदस्य एक एक कर मंच पर आये और एक एक दीपक जला कर अपने स्थान पर लौट गए.
आज के दौर में कवि सम्मलेन के मंचों से काव्यधारा सूखती जा रही है तथा लाफ्टर धारा उफान पर है. ऐसे में इस कार्यक्रम में कुछ नए तरीके की अच्छी हास्य रचनायें भी सुनने को मिलीं. एक ओर जहाँ कोहिनूर द्वारा प्रस्तुत 'छप छपाक' में किसी नृत्यांगना के कदमों की थाप की ध्वनि सुनने को मिली तो वहीं संजय नें मूछों पर एक हास्य रचना पढ़ी. वरिष्ठ कवयित्री शकुंतला बहादुर नें कम सुनने की समस्या पर एक हास्य रचना पढ़ी. लोकप्रिय कवयित्री अर्चना पंडा नें अपने रेडियो जनित अनुभवों को कविता में बाँधा. जो बात अच्छी लगी वो यह की अधिकतर कवितायें जीवन के अनुभवों से निकली थीं तथा किसी भी प्रकार की कृत्रिमता से दूर थीं. भोगे हुए यथार्थ का चित्रण निसंदेह अधिक गहरी पैठ रखने वाला होता है.
"नौकरी की टोकरी" जैसी, अमेरिका आई नारी के मन को प्रतिबिंबित करती सटीक रचना लिखने वाली अर्चना जी नें अपने काव्य पाठ के कुछ अंश यू ट्यूब पर भी अपलोड किये हैं. आप कार्यक्रम के कुछ चित्रों को नीचे देख सकते हैं.
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कविवर देवेन्द्र शुक्ल को समर्पित एक काव्य संध्या
May 3, 2010
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7 प्रतिक्रियाएं:
सही जहा है बन्धु आपने ,हुई दूर कविता मंचों से
जहां आजकल सिर्फ़ विदूषक बहुतायत में पाये जाते
यह विवरण पढ्च कर फिर से इस मन में ये विश्वास जगा है
कविता अभी यहां जीवित है, और बढ़ेगी हँसते गाते
बढ़िया लगा जानकर कविवर देवेन्द्र शुक्ल को समर्पित एक काव्य संध्या के बारे में.
सुन्दर सचित्र रिपोर्ट !
अभिनव जी यह खबर पढ़ कर बहुत अच्छा लगा..आज चुटकुलों के दौर में हिन्दी की हास्य कविताओं की गूँज अभी भी देश विदेश में फैली है...प्रस्तुति के लिए बहुत आभार
प्रिये अभिनव
आपका ब्लॉग पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. उपमा के कवि सम्मलेन को सफल बनाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद. आज के व्यस्त जीवन में हंसी के कुछ पल इस नीरस जीवन में बहुत ज़रूरीहैं
कृपया अपनी हास्य रस के कविता से हुम सब के मनोरंजन हमेशा करते रहीये
सुनीता
धन्यवाद अभिनव,
कार्यक्रम में भाग लेने के साथ साथ आपने इतने अच्छे फोटो लिए(When did you get time ??? How did you manage???) और आपने उसका विवरण इतने जीवंत प्रकार से किया है, पढ़कर बहुत ही आनंद आया |
आपकी कवितायेँ बहुत ही सारगर्भित और दिल को छू लेने वाली हैं |
इश्वर करे आप हमेशा इसी तरह लिखें और आगे बढ़ें |
शुभकामनाओं सहित,
अर्चना दीदी
अभिनव भाई,
जानकारी अच्छी लगी। यह जानकर और भी अच्छा लगा कि मंच पर कविता की खोज आज भी जारी है। हास्य का अपना महत्त्व है और आज के समय में इसकी प्रासंगिकता और भी बढ गयी है बशर्ते कि वह हंसा दे ! हास्य और कविता दोनों की जहां अपनी स्वतन्त्र सत्ता है वहीं अगर हास्य कविता और कविता हास्य हो जाय तो कविता भी हो गयी और हास्य भी हो गया। आप जैसे कुछ लोग यह बखूबी कर लेते हैं ।
शुभकामनाओं सहित,
अमरेन्द्र
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