मेरी कविता,
मुझसे आगे ही नहीं निकल पाती है,
जब भी कोशिश करता हूं,
खुद में ही उलझ कर रह जाता हूं,
ये आत्ममुग्ध शब्द,
ये किराए के भाव,
ये किसी का दिल दुखाने का डर,
इसे तुम्हारी कविता बनने ही नहीं देता है।
मुझसे आगे ही नहीं निकल पाती है,
जब भी कोशिश करता हूं,
खुद में ही उलझ कर रह जाता हूं,
ये आत्ममुग्ध शब्द,
ये किराए के भाव,
ये किसी का दिल दुखाने का डर,
इसे तुम्हारी कविता बनने ही नहीं देता है।
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