मेरा चित्र हटा दो तुम

Jan 31, 2017

कल रात भगत सिंह आये मेरे सपने में,
बोले जब फांसी वाला फन्दा चूमा था,
मन में भारत माता की केवल मूरत थी,
आँखों में आज़ादी का सपना झूमा था।
सोचा न था यह रंग होंगे आज़ादी के,
घर में ही नारे गूँज रहे बर्बादी के,
जिस माँ का वंदन नित करना था फूलों से,
वह माँ घायल है अपनों के ही शूलों से,
अब भी किसान को भूखा सोना पड़ता है,
अब भी गरीब को छिप छिप रोना पड़ता है,
धन पशुओं को ही न्याय यहाँ मिल पाता है,
मज़हब का कैसा रूप है, बैर सिखाता है,
नारी पर अपराध निरंतर होते हैं,
जो रक्षक हैं वे भक्षक बन कर सोते हैं,
शोणित से रंगी हुई माँ की चूनर धानी,
क्या इसकी खातिर दी थी मैंने कुर्बानी,
तुम उठो, जगो, बदलो सारा परिवेश अभी,
तुम बदलोगे, बदलेगा भारत देश तभी,
या भारत माँ की मूरत को सुंदर कर दो,
या वासंती चोला मुझको वापस कर दो,
डर की, कायरता की तहरीर मिटा दो तुम,
या फिर कमरे से मेरा चित्र हटा दो तुम।

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