हम कहाँ जाएँ

Jan 31, 2017

मजूरी पा के लगता है कि कुछ गर्मा-गरम खाएँ।
हुकूमत ये बता हम कैसे 'वन्दे मातरम्' गाएँ।।
जो काला धन समेटे हैं, वो सब गद्दों पे लेटे हैं।
क़तारों से घिरा फुटपाथ आख़िर हम कहाँ जाएँ।।
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देखो! मैं परेशान हूँ, पर आस मन में है,
कुछ ठीक हो रहा है ये एहसास मन में है।
है रोग पुराना, तो औषधि भी तिक्त है,
कुछ रोग गल रहा है ये आभास मन में है।

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घर जल गए जो उनके सुशासन की छाँव में, 
कहने लगे मुख मंत्री, बेवजह शोर है,
औ' बोले पुलिस मंत्री खींसें निपोर कर, 
बिहार में ये होलिका दहन का दौर है।

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फिर प्यास ने समझौता हवाओं से कर लिया,
फिर थक के सो गया कोई बादल की छाँव में।
बामन के कुएं थे, वहां ठाकुर के कुएं थे,
पानी का कुआं ढूँढने निकला मैं गाँव में॥

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इस तरफ़ भी शोर है,
उस तरफ़ भी शोर है,मैं ये सोचता हूँ मेरा राम किसकी ओर है।

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बच्चों का जबसे हुआ वामपंथ से मेल,
ग़द्दारी में पास हैं, देशभक्ति में फ़ेल,
देशभक्ति में फ़ेल, उठाएँ पाक का झंडा,
सरपट दौड़ें जब भी देखें पुलिस का डंडा,
कह अभिनव कविराय ये टेढ़े टेढ़े जाएँ,
लेनिन चरें मार्क्स को कुतर कुतर इतराएँ।


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राम राज के फेर में शत्रुघन नाराज,
उल्टा पुल्टा चल रहा भाजपा का राज,
भाजपा के राज में जो भी करे तबाही,
लड्डू खाए, ऐश करे, लूटे वाह वाही,
इनकी महबूबा है अफज़ल की दीवानी,
भारत की शिक्षा दीक्षा देखे ईरानी।


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