प्रेम सहज विस्तार है, प्रेम दिवस बाज़ार,
प्रेम दिवस बाज़ार, माँगती पत्नी छल्ला,
फूल लिए गलियन में घूमें लल्ली लल्ला,
कह अभिनव कविराय आज कल किस पे टेम,
कार्ड धरो, चकलेट चरो, बस हुई गा प्रेम।
अलार्म बज बज कर, सुबह को बुलाने का प्रयत्न कर रहा है, बाहर बर्फ बरस रही है, दो मार्ग हैं, या तो मुँह ढक कर सो जाएँ, या फिर उठें, गूँजें और 'निनाद' हो जाएँ।
प्रेषक: अभिनव @ 2/14/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 2/12/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 2/12/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 1/31/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 1/31/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 1/31/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 1/31/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 1/31/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 1/31/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 1/31/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 1/31/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 1/31/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 1/31/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 1/31/2017 0 प्रतिक्रियाएं
प्रेषक: अभिनव @ 1/31/2017 0 प्रतिक्रियाएं