खून बहाया मासूमों का फूलों और बहारों का,
देखा नहीं गया क्या तुमसे खुश रहना बेचारों का,
बात खु़दा तक पहुँच गई है जलने वाली बस्ती की,
आज इबादतगाहों में भी चर्चा है हथियारों का,
छोटे बच्चों को भी राम कहानी का अंदाज़ा है,
ताजपोशियाँ खेल सियासत धंधा है मक्कारों का,
इन खबरों की सच्चाई पर ऐतबार कैसे कर लें,
रोम रोम तो बिका हुआ है अब सारे अखबारों का,
एक कयामत नाज़िल होने वाली है जाने क्यूँ लगता है,
आज समन्दर तोड़ रहा दिल साहिल की दीवारों का,
ये मत सोचो उम्र बिताएगा कोई इस डेरे में,
आते जाना जाते जाना मज़हब है बंजारों का,
बालों की चांदी भी कैसे कैसे खेल दिखाती है,
हाल नहीं अब कोई पूछता हमसे इश्क के मारों का,
मेरे पीछे हंसने वाला मुझसे आकर कहता है,
कमज़ोरों की हंसी उड़ाना शौक है इज्जतदारों का,
तलवे चाट रहे थे अब तक जो बदनाम हुकूमत के,
वो फरमान सुनाएँगे अब लुटे हुए दरबारों का,
दफ्तर, बिजली, सड़कें, टीवी, चाय, फोन, चप्पल, जूता,
बच्चे, रोटी, पानी, कपड़ा किस्सा है घर बारों का,
आग मुहब्बत की जिसकी हर गाम हिफाज़त करती हो,
डर दिखलाता है उस 'अभिनव' को कैसे अंगारों का।
संपर्क
किस्मवार
गड्ड-मड्ड
-
▼
07
(64)
-
▼
Feb
(13)
- कुछ सवालों के जवाब
- अब्बा, मेरी कापियाँ जल जाएँगी
- मिस्र में ब्लॉगर को जेल की सज़ा
- एक व्यंग्य - "ग्लोबल वार्मिंग - ए डिफरेंट पर्सपेक्...
- खून बहाया मासूमों का
- शिवरात्रि - रावण और तुलसीदास
- शुऐब भाई के ज़ेब्रा क्रासिंग वाले चुटकुले का कविताकरण
- राष्ट्रभाषा हिन्दी
- मैं जूठे ज़हर में ख़बर ढूँढता हूँ
- अशोक चक्रधर - अब हुए छप्पन
- हम भी वापस जाएँगे
- अयोध्या है हमारी और हम हैं अयोध्या के
- वह समाज मर जाता है जिसकी कविता डरती है
-
▼
Feb
(13)
खून बहाया मासूमों का
Feb 20, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 प्रतिक्रियाएं:
इतनी सुन्दर रचना पर भी दाद नहीं देता कोई
कम्प्यूटर क्या टूट गया है सारे चिट्ठाकारों का
एक तुम्हारी इस रचना पर, सौ गज़लें कुर्बान करूँ
तेरी कलम में छुपा हुआ तेवर, चालीस कटारों का
"खून बहाया मासूमों का फूलों और बहारों का,
देखा नहीं गया क्या तुमसे खुश रहना बेचारों का,"
बहुत ओजस्वी और साथ ही ह्रदय की पीड़ा बयान करते विचार हैं ....अभिनव भाई ..
इस ह्रदय की पीड़ा को कैसे दूँ मैं बधाई
Post a Comment