अमिताभ जी बहुत बढ़िया लिखते हैं. इसका एक बड़ा प्रमाण ये है कि आज सुबह जब मैंने उनकी ग़ज़ल 'माना मंचों का सेवन...' पढ़ी तो अपने मन के भावों को उतारे बिना नहीं रह पाया. ये मेरे नितांत निजी भाव हैं, किसी का इनसे सहमत या असहमत होना स्वाभाविक है. पर मुझे लगता है की जब तक हम कविता हो सरलता और संप्रेषण की दृष्टि से सुगम नहीं बनायेंगे तब तक बात बनेगी नहीं. क्या कारण है की राजू श्रीवास्तव की बात सारा ज़माना समझ जाता है ?
क्या केवल मन की पीड़ा बोझिल शब्दों में,
काग़ज़ पर बिखरा देना कविता होती है,
या कोई सन्देश बड़े आदर्शों वाला,
ज़ोर ज़ोर से गा देना कविता होती है,
वैसे भी भाषाओं पर संकट भारी है,
इस पर बोझ व्यंजनाओं का लक्षणाओं का,
अभिधा की गलियों से भी होकर जाता है,
मिटटी से जुड़ने वाला इक गीत गाँव का,
मंचों पर जो होता है वो नया नहीं है,
बड़े बड़े ताली की धुन पर नाच रहे हैं,
और लिफाफे का सम्बन्ध है अट्टहास से,
हम ही क्यों धूमिल की कापी जांच रहे हैं,
बात ठीक है इसमें कुछ संदेह नहीं है,
कवि में और विदूषक में होता है अंतर,
किन्तु वह मसखरा कवि से अधिक प्रणम्य है,
जिसकी झोली में है मुस्कानों का मंतर.
- (कवि या विदूषक) अभिनव
6 प्रतिक्रियाएं:
कविता क्या है और क्या कवि योगी है
कविता जो भी हो,पर क्या कवि भोगी है :)
सुन्दर! राजू श्रीवास्तव की जय हो! अभिनव शुक्ल जिन्दाबाद! :)
अभिनव जी आप भी कहाँ की पुरानी बात ले बैठे ? कवि और मसखरे की तुलना? ऐसा कीजिये मेरे ब्लोग आलोचक पर डॉ.प्रमोद वर्मा का इसी विषय पर तीन किश्तों में पोस्ट व्याख्यान पढ लीजिये और फिर लिखिये. पता है. http://sharadkokaas.blogspot.com
मंच सजता रहे.
ओह, मैं अनभिज्ञ हूं। कौन अमिताभ?
अमिताभजी बहुत बढ़िया कवि हैं. उनका ब्लॉग निम्न लिंक पर पढ़ा जा सकता है.
http://amitabhald.blogspot.com/
उन्होंने अपनी निम्न रचना ई कविता पर पोस्ट करी थी जिसकी प्रतिक्रिया में मैंने ये रचना लिखी और इसके बाद राकेशजी नें भी इसी विषय पर एक बहुत सुन्दर कविता लिखी.
माना मंचों का सेवन उनकी मजबूरी है
कवि में और विदूषक में कुछ फ़र्क़ जरूरी है
हास्य-व्यंग्य जीवन का रसमय अंग रहा मित्रो,
प्रहसन करना मात्र, सृजन की खाना पूरी है।
कविता में संदेश नहीं या जीवन का लवलेश नहीं
यदि ख़ुमार ही नहीं भला कैसी अंगूरी है।
थोड़ी चुभन, गुदगुदी थोड़ी, कुछ रहस्य कुछ टीस अलक्षित
मन को आड़ोलित न करे वह पंक्ति अधूरी है।
मेरे मित्र क्षमा कर देना ज्यादा कह दूँ तो
बिना मोल करने वालों की यह मजदूरी है।
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