नश्वर है यह देह अनश्वर अपने आत्माराम हैं,
जिनकी इच्छा बिना न जग में पूरे होते काम हैं,
हमको प्रभु नें भेजा देखो हमनें जीवन खूब जिया,
अच्छा पहना अच्छा गहना अच्छा खाया और पिया,
हम जग में रोते आये थे हंसते अपनी कटी उमर,
हमने राह गही जो अपनी वह औरों को बनी डगर,
हम उपवन के वही सुमन जो खिलते आठों याम हैं,
नश्वर है यह देह अनश्वर अपने आत्माराम हैं,
जिनकी इच्छा बिना न जग में पूरे होते काम हैं,
हम वाणी के अमृत पुत्र हैं, स्वाभिमान के वंशज हैं,
दिनकर अपने घर जन्मा है, हम देवों के अंशज हैं,
किसमें हिम्मत है हमसे जो आँख मिलाये धरती पर,
हम युग के इश्वर हैं बोलो कौन जिया जमकर जी भर,
मुट्ठी में आकाश हमारे हम वसुधा के शाम हैं,
नश्वर है यह देह अनश्वर अपने आत्माराम हैं,
जिनकी इच्छा बिना न जग में पूरे होते काम हैं,
अंतिम चाह यही है पीढी आने वाली खूब फले,
संस्कृति संस्कारों में पलकर चिरजीवी हो बढ़ी चले,
इससे हो सम्मान राष्ट्र का भारत मां का मान बढे,
इसे समर्पित यश है पताका अब हम तो हैं पके ढले,
शायद अब आ गया बुलावा जाना प्रभु के धाम है,
नश्वर है यह देह अनश्वर अपने आत्माराम हैं,
जिनकी इच्छा बिना न जग में पूरे होते काम हैं.
- आचार्य रामनाथ सुमन
आचार्य रामनाथ सुमन
Jul 12, 2009प्रेषक: अभिनव @ 7/12/2009
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