महा लिख्खाड़
-
सियार1 week ago
-
मैं हूं इक लम्हा2 weeks ago
-
दिवाली भी शुभ है और दीवाली भी शुभ हो4 weeks ago
-
-
बाग में टपके आम बीनने का मजा4 months ago
-
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है1 year ago
-
पितृ पक्ष1 year ago
-
-
व्यतीत4 years ago
-
Demonetization and Mobile Banking7 years ago
-
मछली का नाम मार्गरेटा..!!9 years ago
नाप तोल
1 Aug2022 - 240
1 Jul2022 - 246
1 Jun2022 - 242
1 Jan 2022 - 237
1 Jun 2021 - 230
1 Jan 2021 - 221
1 Jun 2020 - 256
कब भला संन्यास छूटेगा तुम्हारा
Jul 9, 2009
रेत मुट्ठी से फिसलती जा रही है,
लौटने को है लहर छूकर किनारा,
चन्द्रमा की सौम्य किरणें पूछती
हैं,
कब भला संन्यास छूटेगा तुम्हारा.
मौन रहने का अनूठा प्रण लिए हो,
बंद खिड़की और दरवाज़े किये हो,
स्वयं से छिपते, स्वयं को खोजते
हो,
सत्य, मिथ्या, प्रेम, निष्ठा सोचते
हो,
घुल चुका जिसमें सृजन का गीत
अनुपम,
कब भला वो बोल फूटेगा तुम्हारा.
स्वप्न भी कितने
अधूरे अधबने हैं,
मन की पूछो बात तो हम अनमने हैं,
दर्द नें अब दोस्ती कर ली दवा से,
छत पे जलता दीप कहता है हवा से,
कब मिटेंगी दूरियां, कब हम मिलेंगे,
कब भला ये धैर्य टूटेगा तुम्हारा,
तूलिका से रंग का अनुराग हो तुम,
कृष्ण की वंशी का मधुरिम राग हो
तुम,
झुंड से भटके हिरण सी है चपलता,
नैन में नटखटपना मुख पर सरलता,
जो सकल व्यक्तित्व आकर्षण भरा है,
वो भला क्यों चैन लूटे न हमारा,
इस ह्रदय के गीत की तुम गायिका हो,
ज़िन्दगी के मंच की तुम नायिका हो,
कुछ कंटीली, कुछ सुनहरी रहगुज़र
है,
कष्ट सह कर मुस्कुराने का हुनर है,
ईश्वर का अंश है तुममें समाहित,
चाहता हूँ भक्त बन जाऊं तुम्हारा.
रेत मुट्ठी से फिसलती जा रही है,
लौटने को है लहर छूकर किनारा,
चन्द्रमा की सौम्य किरणें पूछती
हैं,
कब भला संन्यास छूटेगा तुम्हारा.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 प्रतिक्रियाएं:
Post a Comment