मन्दिर की बुझती दीपिकायें टिमटिमा कर जल उठें,
झरने से झरता गीत भी थम जाए पल भर के लिए,
स्वीकार तुम कर लो यदि प्रस्ताव मेरे प्रेम का,
विशकुम्भ ये पीड़ाओं का अमृत भरी गागर लगे,
सूरज की तपती धूप शीतल चांदनी सा नेह दे,
बाहों में तुम भर लो यदि ये गाँव मेरे प्रेम का,
स्वीकार तुम कर लो यदि प्रस्ताव मेरे प्रेम का,
अश्रुओं से भीग जाएँ अधर मेरे शुष्क से,
दुर्गम हिमालय जीतना विचरण लगे बस सांझ का,
बन जाए तीरथ पुण्य ये भटकाव मेरे प्रेम का,
स्वीकार तुम कर लो यदि प्रस्ताव मेरे प्रेम का.
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