स्वीकार तुम कर लो यदि...

Jul 10, 2009


संसार की सारी दिशाएं नृत्य अनुपम कर उठें,
मन्दिर की बुझती दीपिकायें टिमटिमा कर जल उठें,
झरने से झरता गीत भी थम जाए पल भर के लिए,
स्वीकार तुम कर लो यदि प्रस्ताव मेरे प्रेम का,

यह कंटकों की सेज फूलों से बनी चादर लगे,
विशकुम्भ ये पीड़ाओं का अमृत भरी गागर लगे,
सूरज की तपती धूप शीतल चांदनी सा नेह दे,
बाहों में तुम भर लो यदि ये गाँव मेरे प्रेम का,
स्वीकार तुम कर लो यदि प्रस्ताव मेरे प्रेम का,

रेत के सागर में खिल जाएँ बगीचे पुष्प के,
अश्रुओं से भीग जाएँ अधर मेरे शुष्क से,
दुर्गम हिमालय जीतना विचरण लगे बस सांझ का,
बन जाए तीरथ पुण्य ये भटकाव मेरे प्रेम का,
स्वीकार तुम कर लो यदि प्रस्ताव मेरे प्रेम का.

0 प्रतिक्रियाएं: